हड़प्पा सभ्यता(प्राचीन इतिहास)
हड़प्पा सभ्यता
- हड़प्पा सभ्यता (Harappan Civilisation) सिन्धु घाटी की मुख्य सभ्यताओं में से एक हैं. इस सभ्यता का प्रभाव काल 3300-1300 ई.सा. माना जाता हैं.
- यह सभ्यता 2600-1300 ईसा पूर्व अपने चरम शिखर पर थी.
- हड़प्पा सभ्यता का मुख्य प्रभाव उत्तर पश्चिम एशिया में दिखाई देता हैं जो कि अब पाकिस्तान और अफगानिस्तान के अंतर्गत आता हैं.
- इस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता इसलिए कहा जाता है क्योंकि सर्वप्रथम
- 1921 में पाकिस्तान के शाहीवाल जिले के हड्प्पा नामक स्थल से इस सभ्यता की जानकारी प्राप्त हुई।
हड़प्पा सभ्यता
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पूर्व हड़प्पा काल : 3300-2500 ईसा पूर्व
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परिपक्व काल: 2600-1900 ई॰पू॰
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उत्तरार्ध हड़प्पा काल: 1900-1300 ईसा पूर्व
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- इसका विकास सिन्धु और घघ्घर/हकड़ा (प्राचीन सरस्वती) के किनारे हुआ हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा और राखीगढ़ी इसके प्रमुख केन्द्र थे। दिसम्बर 2014 में भिरड़ाणा को सिन्धु घाटी सभ्यता का अब तक का खोजा गया सबसे प्राचीन नगर माना गया है। ब्रिटिश काल में हुई खुदाइयों के आधार पर पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकारों का अनुमान है कि यह अत्यन्त विकसित सभ्यता थी और ये शहर अनेक बार बसे और उजड़े हैं।
- 1861 में एलेक्जेण्डर कनिंघम के निर्देशन में भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना की गयी। 1902 में लार्ड कर्जन द्वारा जॉन मार्शल को भारतीय पुरातात्विक विभाग का महानिदेशक बनाया गया। फ्लीट ने इस पुरानी सभ्यता के बारे में एक लेख लिखा। 1921 में दयाराम साहनी ने हड़प्पा का उत्खनन किया। इस प्रकार इस सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता रखा गया व राखलदास बेनर्जी को मोहनजोदड़ो का खोजकर्ता माना गया।
- यह सभ्यता सिन्धु नदी घाटी में फैली हुई थी इसलिए इसका नाम सिन्धु घाटी सभ्यता रखा गया। प्रथम बार नगरों के उदय के कारण इसे प्रथम नगरीकरण भी कहा जाता है। प्रथम बार कांस्य के प्रयोग के कारण इसे कांस्य सभ्यता भी कहा जाता है।
- सिन्धु घाटी सभ्यता के 1400 केन्द्रों को खोजा जा सका है जिसमें से 925 केन्द्र भारत में है। 80 प्रतिशत स्थल सरस्वती नदी और उसकी सहायक नदियों के आस-पास है। अभी तक कुल खोजों में से 3 प्रतिशत स्थलों का ही उत्खनन हो पाया है ।
- नए शोध में सिन्धु घाटी सभ्यता से भगवान शिव और नाग के प्रमाण मिले है उस आधार पर कहा गया है कि यह सभ्यता निषाद जाति भील से सम्बन्धित रही होगी।
प्रमुख नगर
सिन्धु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल निम्न है
- हड़प्पा
(पंजाब पाकिस्तान)
- मोहेनजोदड़ो
(सिन्ध पाकिस्तान लरकाना जिला)
- लोथल
(गुजरात)
- कालीबंगा(
राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में)
- बनवाली (हरियाणा
के फतेहाबाद जनपद में)
- आलमगीरपुर(
उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में)
- सूत
कांगे डोर( पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त में)
- कोट
दीजी( सिन्ध पाकिस्तान)
- चन्हूदड़ो
( पाकिस्तान )
- सुरकोटदा
(गुजरात के कच्छ जिले में)
हिन्दुकुश पर्वतमाला के पार अफगानिस्तान में
- शोर्तुगोयी
- यहाँ से नहरों के प्रमाण मिले है
- मुन्दिगाक
जो महत्वपूर्ण है
भारत में
भारत के विभिन्न राज्यों में सिन्धु घाटी सभ्यता के निम्न
शहर है:-
गुजरात=[1.लोथल , 2. सुरकोटडा, 3.रंगपुर , 4.रोजी , 5. मालवद, 6.देसूल 7.धोलावीरा ,8.प्रभातपट्टन
,9. भगतराव ]
हरियाणा
= [1. राखीगढ़ी, 2. भिरड़ाणा ,3.बनावली, 4.कुणाल ,5.मीताथल ]
पंजाब
= [1. रोपड़ (पंजाब) , 2. बाड़ा , 3. संघोंल (जिला फतेहगढ़, पंजाब) ]
महाराष्ट्र=[1.दायमाबाद,2. बनावली, 3. कुणाल , 4. मीताथल, 5. महाराष्ट्र, 6. महाराष्ट्राबाद ।
राजस्थान=[कालीबंगा ]
जम्मू कश्मीर
=[ माण्डा ]
सभ्यता की सबसे विशेष बात
- इस सभ्यता की सबसे विशेष बात थी यहाँ की विकसित नगर निर्माण योजना। हड़प्पा तथा मोहन् जोदड़ो दोनो नगरों के अपने दुर्ग थे जहाँ शासक वर्ग का परिवार रहता था। प्रत्येक नगर में दुर्ग के बाहर एक उससे निम्न स्तर का शहर था जहाँ ईंटों के मकानों में सामान्य लोग रहते थे। इन नगर भवनों के बारे में विशेष बात ये थी कि ये जाल की तरह विन्यस्त थे। यानि सड़के एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं और नगर अनेक आयताकार खण्डों में विभक्त हो जाता था। ये बात सभी सिन्धु बस्तियों पर लागू होती थीं चाहे वे छोटी हों या बड़ी। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो के भवन बड़े होते थे। वहाँ के स्मारक इस बात के प्रमाण हैं कि वहाँ के शासक मजदूर जुटाने और कर-संग्रह में परम कुशल थे। ईंटों की बड़ी-बड़ी इमारत देख कर सामान्य लोगों को भी यह लगेगा कि ये शासक कितने प्रतापी और प्रतिष्ठावान थे।
- मोहनजोदड़ो का अब तक का सबसे प्रसिद्ध स्थल है विशाल सार्वजनिक स्नानागार, यह 11.88 मीटर लम्बा, 7.01 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा है। दोनो सिरों पर तल तक जाने की सीढ़ियाँ लगी हैं। बगल में कपड़े बदलने के कमरे हैं। स्नानागार का फर्श पकी ईंटों का बना है। पास के कमरे में एक बड़ा सा कुआँ है जिसका पानी निकाल कर होज़ में डाला जाता था। हौज़ के कोने में एक निर्गम (Outlet) है जिससे पानी बहकर नाले में जाता था। ऐसा माना जाता है कि यह विशाल स्नानागार धर्मानुष्ठान सम्बन्धी स्नान के लिए बना होगा जो भारत में पारम्परिक रूप से धार्मिक कार्यों के लिए आवश्यक रहा है।
- मोहन जोदड़ो की सबसे बड़ा संरचना है - अनाज रखने का कोठार, जो 45.71 मीटर लम्बा और 15.23 मीटर चौड़ा है। हड़प्पा के दुर्ग में छः कोठार मिले हैं जो ईंटों के चबूतरे पर दो पाँतों में खड़े हैं। हर एक कोठार 15.23 मी॰ लम्बा तथा 6.09 मी॰ चौड़ा है और नदी के किनारे से कुछ एक मीटर की दूरी पर है।
आर्थिक जीवन
- सिन्धु सभ्यता की अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान थी, किंतु व्यापार एव पशुपालन भी प्रचलन में था। यहीं के निवासियों से विश्व में सबसे पहले कपास की खेती करना शुरू कियें| जिसे यूनान के लोगों ने सिन्डन कहने लगें| यहाँ के लोग आवश्यकता से अधिक अनाज का उत्पादन करते थे| इसके अलावे कपडा जौहरी का काम, मनक का काम भी प्रचलित था जिसे विदेशो में निर्यात किया जाता था|
- सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग गेंहू, जौ, राई, मटर, ज्वार आदि अनाज पैदा करते थे। वे दो किस्म की गेँहू पैदा करते थे इसके अलावा वे तिल और सरसों भी उपजाते थे। सबसे पहले कपास भी यहीं पैदा की गई। इसी के नाम पर यूनान के लोग इस सिण्डन (Sindon) कहने लगे। हड़प्पा एक कृषि प्रधान संस्कृति थी पर यहाँ के लोग पशुपालन भी करते थे। बैल-गाय, भैंस, बकरी, भेड़ और सूअर पाला जाता था। हड़प्पाई लोगों को हाथी तथा गैंडे का ज्ञान था।
- हड़प्पा सभ्यता के लोगों का दूसरा व्यवसाय पशु-पालन था। यह लोग दूध, मांस उनके कृषि के कार्य और भार ढोने के लिए इनका प्रयोग किया करते थे।
- यह लोग गाय, भैंस, भेड़, बकरी, बैल, कुत्ते, बिल्ली, मोर, हाथी, शुअर, बकरी व मुर्गियाँ पाला करते थे। इन लोगों को घोड़े और लोहे की जानकारी नहीं थी। हड़पपा के लोग ताँबा खेतडी (राजस्थान) तथा बलूचिस्तान से प्राप्त करते थे, व सोना कर्नाटक तथा अफगानिस्तान से प्राप्त करते थे |
- यहाँ के नगरों में अनेक व्यवसाय-धन्धे प्रचलित थे। मिट्टी के बर्तन बनाने में ये लोग बहुत कुशल थे। मिट्टी के बर्तनों पर काले रंग से भिन्न-भिन्न प्रकार के चित्र बनाये जाते थे। कपड़ा बनाने का व्यवसाय उन्नभी निर्यात होता था। जौहरी का काम भी उन्नत अवस्था में था। मनके और ताबीज बनाने का कार्य भी लोकप्रिय था, अभी तक लोहे की कोई वस्तु नहीं मिली है। अतः सिद्ध होता है कि इन्हें लोहे का ज्ञान नहीं था।
- ये अफ़ग़ानिस्तान और ईरान (फ़ारस) से व्यापार करते थे बहुत सी हड़प्पाई सील मेसोपोटामिया में मिली हैं जिनसे लगता है कि मेसोपोटामिया से भी उनका व्यापार सम्बन्ध था।
- इतना तो स्पष्ट है कि हड़प्पा की विकसित नगर निर्माण प्रणाली, विशाल सार्वजनिक स्नानागारों का अस्तित्व और विदेशों से व्यापारिक संबंध किसी बड़ी राजनैतिक सत्ता के बिना नहीं हुआ होगा पर इसके पुख्ता प्रमाण नहीं मिले हैं कि यहाँ के शासक कैसे थे और शासन प्रणाली का स्वरूप क्या था। लेकिन नगर व्यवस्था को देखकर लगता है कि कोई नगर निगम जैसी स्थानीय स्वशासन वाली संस्था थी।
- हड़प्पा में पकी मिट्टी की स्त्री मूर्तिकाएँ भारी संख्या में मिली हैं। एक मूर्ति में स्त्री के गर्भ से निकलता एक पौधा दिखाया गया है। विद्वानों के मत में यह पृथ्वी देवी की प्रतिमा है और इसका निकट सम्बन्ध पौधों के जन्म और वृद्धि से रहा होगा। इसलिए मालूम होता है कि यहाँ के लोग धरती को उर्वरता की देवी समझते थे और इसकी पूजा उसी तरह करते थे
- धोलावीरा के दुर्ग में एक कुआँ मिला है इसमें नीचे की तरफ जाती सीढ़ियाँ है और उसमें एक खिड़की थी जहाँ दीपक जलाने के सबूत मिलते है। उस कुएँ में सरस्वती नदी का पानी आता था, तो शायद सिन्धु घाटी के लोग उस कुएँ के जरिये सरस्वती की पूजा करते थे।
- सिन्धु घाटी सभ्यता के नगरों में एक सील पाया जाता है जिसमें एक योगी का चित्र है 3 या 4 मुख वाला, कई विद्वान मानते है कि यह योगी शिव है। मेवाड़ जो कभी सिन्धु घाटी सभ्यता की सीमा में था वहाँ आज भी 4 मुख वाले शिव के अवतार एकलिंगनाथ जी की पूजा होती है। सिंधु घाटी सभ्यता के लोग अपने शवों को जलाया करते थे,
- लोथल, कालीबंगा आदि जगहों पर हवन कुण्ड मिले है जो की उनके वैदिक होने का प्रमाण है। यहाँ स्वास्तिक के चित्र भी मिले है।
हड़प्पा सभ्यता का पतन
- 1600 ई.सा. तक हड़प्पा सभ्यता का पतन हो चुका था. इस सभ्यता का अंत कैसे हुआ इस पर भी कई इतिहासकारों के बीच द्वन्द हैं. इस द्वन्द का मुख्य कारण यह हैं कि हड़प्पा सभ्यता की भाषा को अभी तक समझा नहीं जा सका हैं. इसीलिए इतिहासकार इसके पतन के कारण की केवल कल्पना ही कर सकते हैं. लेकिन एक कारण ऐसा हैं जिस पर अधिकांश इतिहासकार एकमत नजर आते हैं.
- हड़प्पा सभ्यता सिन्धु नदी व इसकी सहनदी के आसपास बसी थी. ऐसे माना जाता हैं कि सिन्धु नदी में ऐसी बाढ़ आई होगी जिससे लोगों को यह स्थान छोड़कर पलायन करना पड़ा होगा. बाढ़ के अलावा कुछ इतिहासकार यहाँ पर आग लग जाना, महामारी, बाहरी आक्रमण का भी कारण व्यक्त करते हैं.