ब्रिटिश ताज के शासनाधीन पारित अधिनियम

 

ब्रिटिश ताज के शासनाधीन पारित अधिनियम
ब्रिटिश ताज के शासनाधीन पारित अधिनियम

ब्रिटिश ताज के शासनाधीन पारित अधिनियम

भारत शासन अधिनियम, 1858
       भारत शासन अधिनियम, 1858 के द्वारा भारत का शासन ब्रिटिश ताज के अधीन कर दिया गया।
       गवर्नर जनरल को अब भारत का वायसराय भी कहा जाने लगा, जो ब्रिटिश ताज का प्रत्यक्ष प्रतिनिधि बन गया।
       लॉर्ड कैनिंग भारत के प्रथम वायसराय बने।
       इस अधिनियम द्वारा 'भारत के राज्य सचिव' पद का सृजन किया गया, जिसमें भारतीय प्रशासन पर संपूर्ण नियंत्रण की शक्ति निहित थी।
       उसकी सहायता के लिए 15 सदस्यीय परिषद के गठन का प्रावधान किया गया।

भारत  परिषद अधिनियम, 1861
       भारत  परिषद अधिनियम, 1861 द्वारा कानून बनाने की प्रक्रिया में भारतीय प्रतिनिधियों को शामिल करने की शुरुआत हुई।
       अधिनियम द्वारा मद्रास एवं बंबई की प्रेसीडेंसियों को पुनः विधायी शक्तियां देकर विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया की शुरुआत की गई।
       इसने वायसराय को आपातकाल में परिषद की संस्तुति के बिना अध्यादेश जारी करने के लिए अधिकृत किया।

भारत परिषद अधिनियम, 1892
       भारत परिषद अधिनियम, 1892 के माध्यम से केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों में अतिरिक्त (गैर-सरकारी) सदस्यों की संख्या बढ़ा दी गई।
       केंद्रीय विधान परिषद के भारतीय सदस्यों को वार्षिक बजट पर बहस करने तथा सरकार से प्रश्न पूछने का अधिकार भी दिया गया। परंतु मतदान का अधिकार नहीं था।
       निर्वाचन पद्धति का आरंभ किया जाना इस अधिनियम की महत्वपूर्ण विशेषता थी

 भारत परिषद अधिनियम, 1909
       भारत परिषद अधिनियम, 1909 को मार्ले-मिंटो सुधार के नाम से भी जानते हैं।
        इस अधिनियम द्वारा भारतीयों को विधि निर्माण तथा प्रशासन दोनों में प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया। इस अधिनियम ने केंद्रीय तथा प्रांतीय विधायिनी शक्ति की बढ़ा दिया।
       परिषद के सदस्यों को बजट की विवेचना करने तथा उस पर प्रश्न करने का अधिकार दिया गया।
       पृथक निर्वाचन के आधार पर मुस्लिमों के लिए सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया गया था।

भारत शासन अधिनियम, 1919
       भारत शासन अधिनियम, 1919 को मॉन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार के नाम से जाना जाता है।
       इस अधिनियम द्वारा पहली बार प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली अपनाई गई।
        सांप्रदायिक आधार पर निर्वाचन प्रणाली का विस्तार करते हुए इसे सिक्खों, ईसाइयों, आंग्ल-भारतीयों तथा यूरोपीय पर भी लागू कर दिया गया। इस अधिनियम द्वारा पहली बार केंद्र में द्विसदनीय व्यवस्था स्थापित की गई।
       इस अधिनियम द्वारा सभी विषयों को केंद्र तथा प्रांतों में बांट दिया गया।
        द्विसदनीय केंद्रीय विधानमंडल समस्त ब्रिटिश भारत के लिए कानून बना सकती थी।
        इस अधिनियम के तहत प्रांतों में द्वैध शासन प्रणाली लागू की गई।
       प्रांतीय विषयों को दो भागों. आरक्षित तथा हस्तांतरित विषयों में बांटा गया।
       इस अधिनियम में पहली बार 'उत्तरदायी शासन' शब्द का प्रयोग किया गया। इसके अंतर्गत एक आयोग का गठन किया जाना था, जिसका कार्य दस बाद इस अधिनियम की समीक्षा करने के बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करना था।  

कंपनी के अंतर्गत पारित  अधिनियम के लिए click here(small-bt)

 

 भारत शासन अधिनियम, 1935

       भारत शासन अधिनियम, 1935 द्वारा सर्वप्रथम भारत संघात्मक सरकार स्थापना की .
       इस अधिनियम द्वारा प्रांतों द्वैध शासन करके केंद्र में द्वैध शासन प्रणाली गई।
       भारत में मुद्रा लागू साख नियंत्रण के लिए भारतीय रिजर्व बैंक स्थापना की गई। सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का विस्तार करते हुए दलित जातियों, और मजदूरों इसमें सम्मिलित किया गया।
       इसी अधिनियम के वर्ष 1937 संघीय न्यायालय की स्थापना गई।
       इस अधिनियम द्वारा बर्मा को ब्रिटिश भारत अलग कर दिया गया तथा सिंध और उड़ीसा का निर्माण हुआ। इसके तहत कुछ प्रांतों द्विसदनात्मक व्यवस्था की गई।

 भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947

       भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 ने 15 अगस्त, 1947 को भारत को स्वतंत्र एवं संप्रभु राष्ट्र घोषित किया।
       इसने वायसराय का समाप्त कर डोमिनयन राज्यों में गवर्नर जनरल पद किया।
       इसके अंतर्गत शाही उपाधि 'भारत का सम्राट' शब्द समाप्त कर दिया।

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