पर्यावरण और समाज |
पाठ 8 - पुनरावृति नोट्स
CBSE कक्षा 11 समाजशास्त्र
पाठ-3 पर्यावरण और समाज
पुनरावृत्ति नोट्स
स्मरणीय बिन्दु : -
- पर्यावरण- हम जिस वातावरण एवं परिवेश के द्वारा चारों तरफ से घिरे हुए हैं वह पर्यावरण कहलाता हैं।
- मुख्यतः पर्यावरण दो प्रकार का होता है-
- प्राकृतिक पर्यावरण
- मानव द्वारा निर्मित पर्यावरण
- पारिस्थितिकी शब्द से अभिप्राय, एक ऐसे जाल से है जिसमे भौतिक तथा जैविक व्यवस्थाएँ तथा प्रक्रियाएँ घटित होती हैं एवं मानव भी इसका एक हिंसा होता है। सागर, मैदान, नदियाँ, पर्वत, जीव-जन्तु सभी पारिस्थितिक अंग हैं।
- सामाजिक परिस्थितिकी= विज्ञान जो पर्यावरण एवं जीवित वस्तुओं के मध्य के संबंधों का अध्ययन करता है उसे सामाजिक परिस्थितिकी कहते हैं।
- पारिस्थितिकी तंत्र= वह परितंत्र जिसका हिस्सा पशु, पौधे तथा पर्यावरण होते हैं, पारिस्थितिकी तंत्र कहलाता है।
- सामाजिक पर्यावरण का उद्भव जैव- भौतिक पारिस्थितिक तथा मनुष्य के हस्तक्षेप की अंतःक्रिया से पूरा होता है। यह दो - तरफा प्रक्रिया है जिस प्रकार समाज को आकार देती है, ठीक उसी प्रकार से समाज भी प्रकृति को आकार देता है।
- दो तरफा प्रक्रिया :
- प्रकृति संमाज को आकार देती है-
- गहन कृषि के लिए सिंधु, गंगा के बाढ़ के मैदान की उपजाऊ भूमि उपर्युक्त है उसकी उच्च उत्पादकता क्षमता के कारण यह घनी आबादी का क्षेत्र बन जाता है।
- समाज प्रकृति को आकार देता है-
- विश्वभर की प्रकृति को पूँजीवादी सामाजिक संगठनों ने आकार दिया है। शहरों में वायु प्रदूषण और भीड़ - भाड़, प्रादेशिक झगड़े तेल के लिए युद्ध तथा ग्लोबल वार्मिग ने प्रकृति को प्रभावित किया है।
- सामाजिक संगठन के माध्यम से पर्यावरण एवं समाज की अंतः क्रिया को आकार दिया जाता है।
उदाहरण, सम्पत्ति के संबंध यह निर्धारित करते हैं कि कैसे तथा किसके द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया जाएगा। - पर्यावरण और समाज के संबंध उसके सामाजिक मूल्यों तथा प्रतिमानों के अलावा उनके ज्ञान की व्यवस्था में भी प्रतिबंधित होते हैं।
- हम एक जोखिम भरे समाज में जीवन यापन करते हैं जहां ऐसी तकनीकी तथा वस्तुओं का इस्तेमाल करे हैं जिसके बारे में हम उदाहरणों से समझा सकते हैं।
- यदि वनों पर सरकार का अधिकार है तो यह अधिकार सरकार पर ही होगा कि वह यह निर्णय ले कि वनों को किसी कम्पनी को लीज पर दें अथवा ग्रामीणों को वन्य उत्पादों को इकट्ठा करने का अधिकार दे।
- नाभिकिय विषय- जैसे भोपाल की औद्योगिक दुर्घटना और यूरोप में फैली मैडकाऊ बीमारी दर्शाती है कि हम जोखिम भरे समाज में रहते हैं।
- पर्यायवरण की प्रमुख समस्याएँ ओर जोखिम:
- संसाधनो की क्षीणता- अस्वीकृत प्राकृतिक संसाधनो का इस्तेमाल करना पर्यावरण की एक भयंकर समस्या है। उदाहरण : भूजल के स्तर में लगातार कमी
- प्रदूषण-आज के समय में पर्यावरण प्रदूषण एक बहुत व्यापक समस्या बनता जा रहा है। भूमि प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण इत्यादि ऐसे प्रदूषण हैं जिन्होने हमारे प्रदूषण को इतना दूषित कर दिया है कि शुद्ध वायु तथा जल का मिलना असंभव हो गया है।
- प्राकृतिक तथा मानव निर्मित पर्यावरण विनाश।
प्राकृतिक आपदा का उदाहरण- सुनामी।
मानव निर्मित आपदा- भोपाल औद्योगिक दुर्घटना। - वैश्विक तापमान में वृद्धि प्रदूषण की सर्वाधिक बड़ी समस्या हमारे सामने आ रही है वैश्विक तापमन वृद्धि के रूप में विश्वव्यापी तापीकरण की वजह से हमारा पर्यावरण उलट-पलट हो गया है। अधिक गर्मी हो रही है जिससे ध्रुवों की बर्फ पिघल रही है तथा महासागरों में पानी की मात्रा बढ़ रही है। इससे कई द्वीपों के डूबने का खतरा पैदा हो गया है।
- जेनेटिकल मोडिफाइड आर्गेकनजम्स- वैज्ञानिक जीन स्पेलिसिंग की नई तकनीकों के माध्यम से एक केस्म के गुणों को दूसरी किस्म में डालते हैं ताकि बेहतरीन गुणों से भरपूर वस्तु का निर्माण किया जा सके।
उदाहरण- बैसिलस के जीन को कपास की प्रजातियाँ में डाला गया है।
- पर्यावरण की समस्याएँ सामाजिक समस्याएँ भी हैं :
- सामाजिक समस्याओ में पर्यावरण की समस्याएँ भी हैं क्योंकि पर्यावरण प्रत्यक्ष रूप से समाज को प्रभावित करता है। मनुष्य अपने निजी स्वार्थ हेतु पर्यावरण को लम्बे समय से प्रदूषित करता आ रहा है तथा प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करता आ रहा है। मनुष्यों के इन कृत्यों के कारण ही प्रकृति विनाश की तरफ बढ़ रही है तथा मनुष्य को प्रकार की पर्यावरण संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
- पर्यावरण से संबंधित कुछ विवादास्पद मुद्दे :
- नर्मदा बचाओं आंदोलन
- भोपाल औद्योगिक दुर्घटना
- चिपको आन्दोलन
- पर्यावरण संरक्षण की प्रासंगगिकता :
- पर्यावरण के संरक्षण की बहुत जरूरी है क्योंकि जीवन जीने हेतु पर्यायवरण सबसे आवश्यक वजह है। अगर वायु प्रदूषित हो गई तो है स्वस्थ जीवन नहीं जी पायेंगे तथा भावी पीढ़ी हेतु प्राकृतिक संसाधनों की कमी हो जाएगी।
- ग्रीन हाउस :
- पौधों की जलवायु को ज़्यादा ठंड से बचाने हेतु ढका हुआ ढाँचा जिसे हरितगृह भी कहते हैं। इसमें अंदर का तापमान अधिक होता है।
- प्रदूषण के प्रकार :
- ध्वनि प्रदूषण- यातायात के साधनों का शोर, लाउडस्पीकर, वाहनों के हार्न, मनोरंजन के साधनों से निकलने वाली आवाजें, पटाखे आदि।
- भूमि प्रदूषण- रसायनिक खादों का प्रयोग, शहरी कूड़ा कर्कट, खेतों में कीटनाशक दवाओं, सीवरेज, तेजाबी वर्षा से रसायनिक पदार्थों का मिट्टी में मिलना।
- परमाणु प्रदूषण- परमाणु परीक्षण से निकलने वाली किरणें।
- वायु प्रदूषण- उद्योगो तथा वाहनों से निकलने वाली जहरीली गैसे तथा घरेलू उपयोग के लिए लकड़ी तथा कोयले को जलाने से।
- जल प्रदूषण- नदियों तथा जलाशयों में नहाना तथा कूड़ा कर्कट डालना, घरेलू नालियाँ, फैक्ट्री से निकलने वाले व्यर्थ पदार्थ।
- वैश्विक तापमान वृद्धि :
- पृथ्वी द्वारा छोड़ी गई कुछ प्रमुख गैसें (कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन तथा अन्य गैसें) सूर्य की रोशनी को रोककर एवं उसे वापस वायुमंडल में न जाने देकर 'ग्रीनहाऊस' प्रभाव का निर्माण करती हैं। इससे विश्व के तापमान में आवश्यक रूप से बदलाव हुआ है।
- 'ग्लोबल वार्मिग' के कारण जलवायु में उतार-चढ़ाव एवं अनियमितता का प्रभाव पूरी दुनिया पर देखा जा सकेगा। चीन तथा भारत पूरी दुनिया में सर्वाधिक कार्बन और ग्रीनहाऊस से निकलने वाली गैसों में योगदान देने वाले देश हैं।
- जैनेटिकली मोडिफाइड आर्गेनिज़म्स:
- जैनेटिक मोडिफिकेशन आर्गनिज़म्स (Genetic Modification Organisms) का प्रयोग कम समय में पैदावार, फसल का आकार तथा उनकी समय सीमा को बढ़ाने हेतु भी किया जा सकता है। यधपि हमें लम्बे समय में इससे होने वाले प्रभाव की बहुत ही कम जानकारी है कि ऐसा भोजन खाने वालों तथा पारिस्थितिक तंत्र पर इसका क्या असर पड़ सकता हैं।
- वैज्ञानिक जीन-स्पेलिसिंग (Gene-splicing) की नयी तकनीकों के द्वारा एक किस्म के गुणों की दूसरी किस्म में डालते हैं ताकि बेहतरीन गुणों से भरपूर वस्तु का निर्माण किया जा सके।
- प्राकृतिक तथा मानव-निर्मित पर्यावरण विनाश :
- 1984 में भोपाल आपदा जिसमें यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से गैस रिसने के कारण 4000 व्यक्तियों की मृत्यु और 2004 का सुनामी मानव-निर्मित पर्यावरण आपदा के उदाहरण हैं।
- पर्यावरण की समस्याएँ सामाजिक समस्याओं के कारण :
- सामाजिक परिस्थिति तथा शक्ति इस बात पर आधारित है कि व्यक्ति अपने आपको पर्यावरण की आपदाओं से बचाने या उस पर विजय प्राप्त करने के लिए किस हद तक जा सकता है।
- सामाजिक पारिस्थितिकी के अंतर्गत, सामाजिक संबंध, मुख्य रूप से संपत्ति और उत्पादन के संगठन की सोच तथा प्रयत्न की एक आकार देते हैं।
- समाजशास्त्रीय समीक्षा के अंतर्गत सार्वजनिक प्राथमिकताएँ तय की जाती हैं तथा किस प्रकार इन्हें आगे बढ़ाया जाता है यह भी। सार्वभौमिक रूप से वे लाभदायक नहीं भी हो सकते हैं। जनहित के कार्यों की रक्षक नीतियाँ वास्तव में राजनीतिक तथा आर्थिक रूप से शक्तिशाली वगों के लाभ की रक्षा करती हैं अथवा गरीब तथा राजनीतिक रूप से कमज़ोर वर्गों को नुकसान पहुँचाती हैं।