समाज में सामाजिक संरचना स्तरीकरण और सामाजिक प्रक्रियाएँ

 

समाज में सामाजिक संरचना स्तरीकरण और सामाजिक प्रक्रियाएँ
समाज में सामाजिक संरचना स्तरीकरण और सामाजिक प्रक्रियाएँ

पाठ 6 - पुनरावृति नोट्स


CBSE कक्षा 11 समाजशास्त्र
पाठ-1 समाज में सामाजिक संरचना स्तरीकरण और सामाजिक प्रक्रियाएँ
पुनरावृत्ति नोट्स


स्मरणीय बिन्दु :

  • 'सामाजिक संरचना' शब्द के अंतर्गत, समाज संरचनात्मक है।
  • 'सामाजिक संरचना' शब्द का इस्तेमाल, सामजिक सम्बन्धों, सामाजिक घटनाओं के निश्चित क्रम हेतु किया जाता है।
  • मानव द्वारा समाज उस इमारत की प्रकार होता है जिसका सभी क्षण उन्हीं ईंटों से पुनर्रचना होती है जिनसे उसे बनाया गया है।
  • इमिल दुर्खाइम केअंतर्गत, अपने सदस्यों की क्रियाओं पर सामाजिक नियंत्रण रखते हैं तथा व्यक्ति पर समाज के प्रभुत्व होता है।
  • कार्ल मार्क्स ने भी संरचना की बाध्यता पर ध्यान केंद्रित लिया है लेकिन वह मनुष्य की सृजनात्मकता को भी आवश्यक मानते हैं।
  • समाजीकरण स्तरीकरण से अर्थ,"समाज में समूहों के मध्य संरचनात्मक असमानताओं के अस्तित्व से है, भौतिक एवं प्रतीकात्मक पुरस्कारों की पहुँच से है।"
  • आधुनिक समाज धन और शक्ति की असमानताओं की वजह से जाने जाते हैं।
  • सामाजिक स्तरीकरण= यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें समाज उच्चता तथा विविधता के अंतर्गत अनेक समूह में विभाजित हो जाता है।
  • स्तरीकरण की संकल्पना उस विचार को संदर्भित करती है जिसमे समाज का वर्गीकरण एक निश्चित प्रतिमान के रूप में होता है, तथा यह संरचना निरंतर/पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रहती है। असमान रूप से विभाजित गये लाभ के मध्य बुनियादि तरह है जिसका उपभोग विशेषाधिकार प्राप्त समूहों द्वारा तथा किया जाता है
    1. सामाजिक प्रस्थिति- मान-सम्मान तथा समाज के अन्य व्यक्तियों की नज़रों में उच्च स्थान।
    2. राजनैतिक प्रभाव- किसी विशिष्ट समूह के निर्णय लेने की शक्ति के अंतर्गत एक समूह का दूसरे समूह पर प्रभुत्व जमाना।
    3. जीवन अवसर- ये वे सभी भौतिक लाभ होते है जो प्राप्तकर्ता के जीवन को सुधारते हैं। उदाहरण: स्वास्थ्य से संबंधित लाभ, रोजगार सुरक्षा, स्वास्थ्य, आय और मनोरंजन आदि।
  • व्यक्ति और वर्गों को मिलने वाले अवसर तथा संसाधन जो प्रतियोगिता, सहयोग अथवा संघर्ष के रूप में सामने आते हैं-इन्हें सामाजिक संरचना तथा सामाजिक स्तरीकरण के अंतर्गत आकार प्रदान किया जाता हैं।
  • समाजशास्त्र में सामाजिक प्रक्रियाएँ :
    • सामाजिक प्रक्रियाएँ
      • सहयोगी - संतुलन व एकता में योगदान =उदाहरण : प्रतिस्पर्धा
      • असहयोगी - संतुलन व एकता में बाधा = उदाहरण : बाधा
  • कार्ल्स मार्क्स तथा एमिल दुर्खाइम के अंतर्गत,"मनुष्यों को अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने हेतु सहयोग होता है एवं अपने और अपनी दुनिया के लिए उत्पादन और पुनः उत्पादन करना पड़ता है।"
    प्रकार्यवादी परिप्रेक्ष्य का सरोकार मुख्य रूप से समाज में 'व्यवसाय की आवश्यकता' से है।
    • संचार की साझा प्रणाली
    • व्यक्ति की भूमिका निर्धारण के तरीके
    • नए सदस्यों का समाजीकरण
  • समाज के अनेक भागों का एक प्रकार्य तथा भूमिका होती है यह संपूर्ण समाज की प्रकार्यत्मकता के लिए जरूरी होता है।
  • प्रतियोगिता और संघर्ष को इस दृष्टि से भी जाना जा सकता है ज़्यादातर स्थितियों में से बिना ज्यादा हानि तथा कष्ट के सुलझ जाते हैं तथा समाज की भी अनेक तरह से सहायता करते हैं।
  • सहयोग, प्रतियोगिता एवं संघर्ष के आपसी संबंध अधिकतर जटिल होते हैं तथा ये आसानी से अलग नहीं किये जा सकते।
  • समाजशास्त्र में सामाजिक प्रक्रियाओं को समझने के तरीके
    समाजशास्त्र सहयोग, प्रतिस्पर्धा एवं संघर्ष की प्रक्रियाओं की व्याख्या समाज की वास्तविक संरचना के अंतर्गत करना चाहता है।

सामाजिक प्रक्रियाओं को समझने के तरीके:

  • प्रकार्यवादी परिप्रेक्ष्य पथप्रर्शक-एमिल दुर्खाइम
  • संघर्षवादी परिप्रेक्ष्य पथप्रदर्शक-कार्ल मार्क्स
  • दोनों परिप्रेक्ष्यो के अनुसार, मनुष्यों को अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए मदद करता है एवं अपने और अपनी दुनिया के लिए उत्पादन और पुनः उत्पादन करना पड़ता है।
  • संघर्ष के परिप्रेक्ष्य में इस तथ्य को केंद्रित किया गया है कि किस तरह सहयोग के प्रकारों ने एक ऐतिहासिक समाज को दूसरे ऐतिहासिक समाज में बदल दिया।
  • उदाहरणतः सरल समाजों में जहाँ अतिरिक्त उत्पादन नहीं होता था, वहाँ समाज के समूहों में आपसी सहयोग था। लेकिन पूँजीपति समाज में जहाँ उत्पादन अतिरिक्त था, वहाँ प्रभावशाली वर्ग का इस पर अधिकार था तथा सहयोग के स्थान पर अतिरिक्त उत्पादन पर नियंत्रण स्थापित करने के प्रश्न पर संघर्ष और प्रतियोगिता का उदय हुआ।
  • संघर्षवादी परिप्रेक्ष्य (Conflict perspective)-संघर्ष का दृष्टिकोण में यह बताया गया है कि समूहों तथा व्यक्तियों का स्थान उत्पादन प्रणाली के संबंधों में अलग और असमान होता है। अतः कारखाने के मालिक तथा मज़दूर अपने प्रतिदिन के कार्यों में मदद करते हैं लेकिन थोड़ी सीमा तक उनके हितों में संघर्ष उनको परिभाषित करते हैं।
  • संघर्षवादी परिप्रेक्ष्य का केंद्रबिंदु जाति, वर्ग अथवा पितृसत्ता के आधार पर समाज का विभाजन है। कुछ समूह सुविधा वंचित हैं तथा एक-दूसरे के प्रति भेदभावपूर्ण स्थिति बरतते हैं।

प्रकार्यवादी परिप्रेक्ष्य (Functionalist perspectivc) :

  • इसका संबंध समाज में व्यवस्था की जरूरतों से हैं- जिन्हें कुछ प्रकार्यात्मक अपेक्षा, प्रकार्यात्मक अनिवार्यताएँ तथा पूर्वापेक्षाएँ कहा जाता है। ये विस्तृत रूप में उन शर्तों को पूरा करती हैं, जो व्यवस्था के व्यक्तित्व हेतु जरूरी है। उदाहरण :
    • संचार की साझा प्रक्रिया।
    • व्यक्ति की भूमिका निर्धारण के तरीके।
    • नए सदस्यों का सामाजीकरण।
  • सहयोग एक सहचारी प्रक्रिया है यह संघर्ष से भिन्न है, क्योंकि संघर्ष एक विघटनशील सामाजिक प्रक्रिया है यह सचेत या अचेत प्रक्रिया हो सकता है, जबकि संघर्ष सामान्यतया एक सचेत प्रक्रिया है।
  • सहयोग सार्वभौमिक और निरंतर प्रक्रिया है। इसमें दूसरों के प्रति सहानुभूति एवं परानुभूति शामिल हैं। इसका स्वभाव निःस्वार्थ हैं। सहयोग मनोवैज्ञानिक और सामाजिक आवश्यकता हैं।
  • प्रकार्यवादी परिप्रेक्ष्य इस तथ्य पर आधारित है कि समाज के विभिन्न भागों का एक प्रकार्य अथवा भूमिका होती है जो संपूर्ण समाज की पोषण और प्रकार्यात्मकता के लिए जरूरी होती है।
  • प्रकार्यवादी परिप्रेक्ष्य के अनुसार, सहयोग, प्रतियोगिता तथा संघर्ष को प्रत्येक समाज की सार्वभौमिक विशेषता के रूप में देखा जा सकता है तथा उनके मध्य विद्यमान संबंधों का स्वरूप सामान्य तथा जटिल होता है। यह सुगमता से अलग नहीं किया जा सकता है।
  • सहयोग का संबंध दो या दो से ज़्यादा व्यक्तियों द्वारा किया जा रहा लगातार व समान प्रयत्न से है। वे समान लक्ष्य की प्राप्ति के औचित्य से साथ-ही-साथ काम करते हैं।
  • ऐसी स्थितियों की व्याख्या हेतु प्रकार्यवादी व्यवस्थापन शब्द का इस्तेमाल सामान्यतया करते हैं। संघर्ष के रहते हुए भी समझौता एवं सह-अस्तित्व की कोशिश के रूप में इसे देखा जा सकता है।
  • व्यवस्थापन को सामाजिक प्रक्रिया के उस स्वरूप में देखा जा सकता है, जिसमें दो या दो से ज़्यादा व्यक्ति या समूह संघर्ष से सुरक्षा, कम एवं खत्म करने के औचित्य से अंतःक्रिया करते हैं।
  • सहयोग तथा व्यवस्थापन दो अलग-अलग प्रक्रियाएँ हैं, लेकिन दोनों सहचारी की प्रक्रियाएँ हैं। दोनों के परिणाम स्वरूप,चेतना का भाव जागृत होना, समाज में सामूहिक जीवन का निर्माण, एकीकरण आत्मसात्करण और मैत्री का भाव पैदा होता है।
  • आत्मसात्करण (Assimilation) का संबंध एक सामाजिक प्रक्रिया से होता है, इसके अंतर्गत दो या दो से ज़्यादा व्यक्ति या समूह एक-दूसरे के व्यवहारों के प्रतिमान को स्वीकृत एवं संपादित करते हैं।
  • समान लक्ष्य की प्राप्ति हेतु सहायता व्यक्तियों या समूहों के बीच विद्यमान संबंधों की बखान करता है, लेकिन व्यवस्थापन तथा आत्मसात्करण सहयोग की प्रक्रिया में विविध चरणों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

सहयोग तथा श्रम विभाजन:

  • सहयोग की अवधारणा मानव व्यवहार की कुछ मान्यताओं पर आधारित हैं।
  • सहयोग के बिना मानव जाति का अस्तित्व कठिन हो जाएगा। यह व्यक्तियों को एकसूत्र में बाँधता हैं, ज्ञान प्राप्ति के लिए अवसरों का सृजन करता है, जो आर्थिक जगत् में अत्यधिक लाभप्रद है।
  • दुर्खाइम की एकता सहयोग को समझने के लिए बुनियाद अवयव है।
  • श्रम विभाजन की भूमिका जिसमें सहयोग निहित हैं, यथार्थ रूप से समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है।
  • दुर्खाइम ने यांत्रिक (Mechanical) तथा जैविक (Organic) एकता में अंतर स्पष्ट किया। दोनों समाज में सहयोग के स्वरूप हैं।
  • यांत्रिक एकता- यह संहति का एक रूप है जो बुनियादी रूप से एकरूपता पर आधारित है। इस समाज के अधिकाँश सदस्य एक जैसा जीवन व्यतीत करते हैं, कम से कम विशिष्टता अथवा श्रम-विभाजन को हमेशा आयु से जोड़ा जाता है।
  • सावयवी एकता- यह सामाजिक संहति का वह रूप है जो श्रम विभाजन पर आधारित है तथा जिसके फलस्वरूप समाज के सदस्यों में सह निर्भरता है।
  • मनुष्य सहयोगी होते हैं। वे समायोजन तथा सामंजस्य ही नहीं करते, बल्कि जिस समाज में वे रहते हैं, उसे बदलते भी है।
  • यद्यपि दुर्खाइम और कार्ल मार्क्स दोनों सहयोग पर बल देते हैं, लेकिन उन दोनों में भिन्नता भी है।
  • मार्क्स के अनुसार ऐसे समाज में जहाँ वर्ग विद्यमान है, वहाँ सहयोग स्वैच्छिक नहीं होता है। इसका कारण है कि उनके सहयोग स्वैच्छिक नहीं हैं और इसका उद्भव स्वाभाविक रूप से हुआ है। दूसरे शब्दों में, मज़दूर अपने कार्य को किस प्रकार व्यवस्थित करे, इस पर उनका नियंत्रण नहीं होता; और इसी प्रकार वे अपने श्रम के उत्पादन पर से भी अपना नियंत्रण खो देते हैं। सन्तुष्टि तथा सृजनात्मकता का भाव जो एक बुनकर या कुम्हार या लुहार को अपने काम से मिलता हैं वह एक फैक्ट्री में काम करने वाले मज़दूर जिसका एकमात्र कार्य पूरे दिन में लीवर खींचना या बटन दबाना होता है, को नहीं मिलता है। इन हालतों में सहयोग आरोपित होता है।

प्रतिस्पर्धा-अवधारणा एवं व्यवहार के रूप में (Competition as asides and practice):

  • प्रतियोगिता- यह एक सामाजिक प्रक्रिया है इसके द्वारा दो या ज़्यादा व्यक्तियों का एक ही वस्तु को प्राप्त करने हेतु किया गया प्रयत्न है।
  • प्रतिस्पर्धा भी सहयोग की तरह सार्वभौमिक तथा प्राकृतिक विघटनकारी सामाजिक प्रक्रिया है, यद्यपि समाजशास्त्र की व्याख्या प्रकृतिवादी व्याख्या से अलग है।
  • आधुनिक समय में प्रतिस्पर्धा एक प्रभावशाली प्रक्रिया है और ज़्यादातर यह समझना कठिन होता है कि कहीं ऐसा समाज सकता है, जहाँ प्रतिस्पर्धा एक मार्गदर्शक ताकत न हो।
  • एमिल दुर्खाइम और कार्ल मार्क्स ने आधुनिक समाजों में व्यक्तिवाद तथा प्रतिस्पर्धा के विकास को एक साथ आधुनिक समाजों में देखा है। आधुनिक पूँजीवादी समाज जिस प्रकार कार्य करते हैं, वहाँ दोनों का एक साथ विकास सहज है। पूँजीवादी समाज में अत्यधिक कार्यकुशलता तथा लाभ के कमाने पर बल दिया जाता है।
  • प्रतिस्पर्धा की विचारधारा पूँजीवादी की सशक्त विचारधारा है। इसके अंतर्गत, बाज़ार इस तरह से काम करता हैं कि ज़्यादातर कार्यकुशलता सुनिश्चित हो सके। उदाहरण, प्रतिस्पर्धा यह सुनिश्चित करती है कि ज़्यादातर अंक पाने वाला छात्र अथवा बेहतरीन छात्र को प्रसिद्ध कॉलेजों में दाखिला मिल सके और फिर बेहतरीन रोज़गार प्राप्त हो सके।
  • इस विचारधारा के अनुसार, व्यक्ति समान आधार पर प्रतिस्पर्धा करते हैं। जैसेकि शिक्षा, नौकरी या संसाधन की प्रतिस्पर्धा के संदर्भ में सभी व्यक्ति समान रूप से अवस्थित हैं।लेकिन, जैसे स्तरीकरण तथा असमानता प्रदर्शित करते हैं। वैसे समाज में उनकी अवस्थिति अलग-अलग हैं, जिसका परिणाम संघर्ष के रूप में उजागर होता है।
  • संघर्ष तथा सहयोग:
  • संघर्ष= यह एक विघटनकारी सामाजिक प्रक्रिया है संघर्ष शब्द का अर्थ हैं हितों में टकराहट। यह विघटनकारी सामाजिक प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति और समूह हिंसा या हिंसा के स्रोत (धमकी) के माध्यम से प्रत्यक्ष रूप से प्रतिद्वन्द्रीयों (Antagonist) को चुनौती देते हुए अपने ओचित्यो की प्राप्ति चाहता हैं।
  • समाज में संसाधनों की कमी की वजह से संघर्ष का जन्म होता है, चूँकि व्यक्तियों का समूह उन संसाधनों पर पहुँच की स्थापना तथा नियंत्रण हेतु संघर्ष करते हैं।
  • संघर्ष का आधार परिवर्तनशील है। यह वर्ग या जाति, जनजाति या लिंग. नृजातीयता या धार्मिक समुदाय हो सकते हैं।
  • समाजशास्त्रियों के अनुसार है, सामाजिक विकास की विविधता अवस्थाओं में संघर्ष की प्रकृति और रूप हमेशा परिवर्तित होते रहे हैं। लेकिन संघर्ष किसी भी समाज का एक आवश्यक अंग हमेशा से रहा है।
  • समाजिक परिवर्तन और लोकतांत्रिक अधिकारों पर सुविधावंचित तथा भेदभाव का सामना कर रहें समूहों द्वारा हक जताना संघर्षों को और उभारता है।
  • संघर्ष प्रतिस्पर्धा से अलग पहलु है। प्रतिस्पर्धा कोई अचेत प्रक्रिया हो सकती हैं,लेकिन संघर्ष सामान्यतया एक सचेत प्रक्रिया है। प्रतिस्पर्धा का मुख्य औचित्य लक्ष्य की प्राप्ति हैं, लेकिन संघर्ष की वजह सामान्यतया व्यक्ति औचित्य होता है।
  • संघर्ष विसंगति एवं प्रत्यक्ष झड़प के रूप में दिखाई देते हैं, जहाँ ये खुल कर प्रकट किए जाते हैं। लेकिन आंदोलन की अनुपस्थिति का अर्थ संघर्ष की अनुपस्थिति नहीं है।
  • चूँकि संघर्षों को प्रत्यक्ष रूप से संप्रेषित नहीं किया जाता है। अधीनस्थ वर्ग जैसे, महिला तथा कृषक संसाधनों में समायोजन तथा सहयोग पाने हेतु विविध तरह की रणनीति बनाते हैं। इस संदर्भ में समाजशास्त्री अध्ययन अप्रत्यक्ष संघर्ष तथा प्रत्यक्ष सहायता को दर्शाते हैं जो समाज में ज़्यादा सत्य और सामान्य है।
  • संघर्ष विभिन्न प्रकार के होते हैं:
    • जाति संघर्ष, राजनीतिक संघर्ष
    • अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष, निजी संघर्ष
    • नस्ली संघर्ष, वर्ग संघर्ष
  • परहितवाद- परहितवाद बिना किसी लाभ के दूसरों के हित के लिए काम करना परहितवाद कहलाता है।
  • मुक्त व्यापार / उदारवाद- वह राजनैतिक तथा आर्थिक नजरिया, जो इस सिद्धांत पर आधारित है कि सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था में अहस्तक्षेप नीति अपनाई जाए तथा बाजार एवं संपत्ति मालिकों को पूरी छुट दे दी जाए।
  • सामाजिक बाध्यता- हम जिस समूह अथवा समाज के हिस्सा होते हैं उसका हमारे व्यवहार पर प्रभाव होता हैं। दुर्खाइम के अंतर्गत, सामाजिक बाध्यता सामाजिक तथ्य का एक विशिष्ट लक्षण है।
    सहयोगसंघर्ष
    1. सहयोग अर्थात् साथ देना1. संघर्ष शब्द का अर्थ है हितों में टकराव अर्थात् सहयोग न करना।
    2.निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।2.अनिरंतर प्रक्रिया है।
    3. अवैयक्तिक होता है।3. व्यक्तिगत होता है।
    4. सामाजिक नियमों का पालन होता है।4.सामाजिक नियमों का पालन नहीं होता।
    5.अहिंसक रूप है।5. हिंसक रूप है।

 

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