समाजशास्त्र अनुसंधान पद्धतियाँ

 

समाजशास्त्र अनुसंधान पद्धतियाँ
समाजशास्त्र अनुसंधान पद्धतियाँ

पाठ 5 - पुनरावृति नोट्स


CBSE कक्षा 11 समाजशास्त्र
पाठ - 5, समाजशास्त्र अनुसंधान पद्धतियाँ
पुनरावृत्ति नोट्स


स्मरणीय बिन्दु-

  • सामाजिक तथ्यों की जानकारी हेतु समाजशास्त्री अटकलबाजी तथा सामान्य ज्ञान से बाहरी कार्य करते हैं। अतः सामाजिक व्याख्या आनुभविक अनुसंधान पर आधारित हैं। आनुभविक अनुसंधान का संबंध सामाजिक अध्ययन के किसी दिए गए क्षेत्र में इस्तेमाल की गई तथ्यपरक जाँच से हैं।
  • अनुसंधान प्रविधि में अन्वेषण शुरू हुए स्थान से लेकर इसके निष्कर्ष प्रकाशित होने तथा साथी सामाजिक वैज्ञानिकों के विचारों के साथ तालमेल तक विभिन्न चरण सम्मिलित हैं।

अनुसंधान प्रविधि के चरण:

  1. विषय का चुनाव और समस्या की परिभाषा
  2. द्वितीय साहित्य का पुनरीक्षण
  3. परिणाम का विश्लेषण
  4. परिणाम का आदान-प्रदान
  5. परिकल्पना का निर्माण
  6. अनुसंधान पद्धति का चुनाव
  7. अाँकड़ों का संकलन और सूत्रनाओं का अभिलेखन

अनुसंधान पद्धतियाँ :

  1. व्यष्टि पद्धति
  2. समष्टि पद्धति

प्राथमिक बनाम द्वितीयक अनुसंधान :

  1. प्राथमिक अनुसंधान
  2. द्वितीयक अनुसंधान

परिणात्मक बनाम गुणात्मक अनुसंधान :

  1. परिणात्मक अनुसंधान
  2. गुणात्मक अनुसंधान

सर्वेक्षण पद्धति :

  • सर्वेक्षण को एक परिणात्मक तथा समष्टि अनुसंधान पद्धति कहा जाता है। यह किसी विषय पर व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करने की कोशिश हैं।
  • मानकीकृत सूचना सभी उत्तरदाताओं से स्पष्ट समान व्यवस्था के माध्यम से समान प्रश्नों की जानकारी प्राप्त करने के बाद संकलित किया जाता है।
  • आँकड़े संकलन की मुख्य तकनीक के रूप में सर्वेक्षण प्रश्नावली पर आधारित हैं।
  • यह व्यक्तियों की अभिवृति, विश्वास और व्यवहार से संबंधित जानकारी संकलन हेतु इस्तेमाल किया जाता हैं।
  • इसमें जनसंख्या से संबंधित मानकीकृत सूचना के संकलन का अध्याय किया जाता है।

दो प्रकार के सर्वेक्षण :

  1. वर्णनात्मक सर्वेक्षण
  2. विश्लेषणात्मक सर्वेक्षण

सर्वेक्षण के लाभ :
जनसंख्या के सिर्फ छोटे भाग का वास्तविक अध्ययन करके परिणाम की बड़ी जनसंख्या हेतु सामान्यीकरण किया जाता है। अतः सर्वेक्षण की सहयोग से कोई समय, धन एवं प्रयास के उचित व्यय के साथ अध्ययन कर सकता है।

सर्वेक्षण के दोष :

  1. सर्वेक्षण में उत्तरदाता से सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करना संभव नहीं है। इसकी वजह यह है कि प्रत्येक उत्तरदाता पर लगने वाला समय ज़्यादातर सीमित होता है।
  2. इसका मुख्य कारण यह है कि सर्वेक्षण में विभिन्न अन्वेषक शामिल होते हैं, इसलिए यह  बहुत कम माना जाता हैं कि जटिल प्रश्नों को सभी उत्तरदाताओं से स्पष्ट रूप से समान क्रम में पूछे जाते होंगे।
  3. एक विशेष पद्धति अंतर्गत सर्वेक्षण ज़्यादा लचीला नहीं है क्योंकि यदि प्रश्नों को व्यवस्थित कर दिया जाता हैं, तो अन्य प्रश्नों को जोड़ा नहीं जा सकता है।
    यह सर्वेक्षण को सफल होने हेतु स्पष्ट निर्मित प्रश्नावली और स्पष्ट रूप से चुने गए प्रतिदर्श पर सम्पूर्णः निर्भर हैं।
  4. सर्वेक्षण में जो प्रश्न पूछे जाते हैं. वे व्यक्तिगत या भावनात्मक नहीं हो सकते हैं। इसका कारण यह हैं कि अन्वेषक और उत्तरदाताओं के मध्य दीर्घकालिक अंतःक्रिया नहीं रहती हैं।
  5. प्रेक्षण पद्धति के विपरीत सर्वेक्षण में अन्वेषक के लिए यह जानना कठिन हैं कि उत्तरदाता के द्वारा अभिव्यक्त जाहिर प्रतिक्रिया सही या गलत है।

प्रश्नावली:
ये तकनीक सर्वेक्षण पद्धति में प्रयोग किए जाते हैं:

  1. इसका औचित्य अनुसंधान क्षेत्र के लिए प्रासंगिक सूचना प्रदान करना है।
  2. प्रश्नावली का संदर्भ पूर्व निर्धारित प्रश्नों के एक समुच्चय से है जो उत्तरदाता को छपे हुए या लिखित प्रारूप में दिया जाता है।
  3. इसको उत्तरदाता द्वारा स्वयं भरा जाता हैं एवं शोधकर्ता को ई-मेल (e-mail) भी किया जा सकता है।

प्रश्नावली में दो प्रकार के प्रश्न होते हैं:

  1. निष्प्रयोजन-यह उत्तरदाता को सूचना भरने या इसे शोधकर्ता की मल करने की अनुमति देता है। सांख्यिकीय रूप से इसकी व्याख्या करना कठिन है। इसका लाभ यह है कि उत्तरदाता को यह अनुमति होती हैं वह अपने उत्तर लिख सकता है जो वह उपयुक्त समझता है।
  2. सीमित-प्रयोजन-यहाँ उत्तरदाता को दिए गए अनगिनत उत्तरों में से चुनाव करने के लिए कहा जाता हैं।
    उदाहरण के तौर पर, क्या आप सोचते हैं कि भारत में जाति महत्वपूर्ण है? (i) हाँ (ii) नहीं

पद्धति के रूप प्रेक्षण/अवलोकन : 

  1. ये आँकड़े संकलन हेतु एक पद्धति है तथा इसका अभिप्राय है मानवीय व्यवहार को अभिलिखित (Recording) करना क्योंकि यह बिना नियंत्रण के वास्तविक रूप में घटित होता हैं।
  2. ये एक सहभागी प्रेक्षण/ निरीक्षण या असहभागी प्रेक्षण/निरीक्षण के स्वरूप में हो सकता है।

असहभागी प्रेक्षण/निरीक्षण :

  • इसमें निरीक्षक को अध्ययन के समूह से पृथक किया जाता है जिसे जानकारी हो भी सकती हैं या नहीं भी हो सकती है कि उनका निरीक्षण किया जा रहा है।
  • जिनका निरीक्षण किया जा रहा हैं वह निरीक्षक उनके क्रिया-कलापों में भाग नहीं लेता है। यह जिस व्यक्ति का अध्ययन किया जा रहा हैं, उसे कष्टकर स्थिति में निर्धारित करता है और उसका आचरण अस्वाभाविक बन सकता हैं। यधपि असहभागी निरीक्षण निरीक्षक की बाह्य दृष्टि के इस्तेमाल के खतरे को कम नहीं करता है।

सहभागी प्रेक्षण/निरीक्षण :

  • यह एक अनुसंधान पद्धति है जिसका समाजशास्त्र और मानवविज्ञान के क्षेत्र में अत्याधिक इस्तेमाल की जाती है। यहाँ शोधकर्ता अध्ययन के समूह के क्रियाकलापों में भाग लेता हैं।
  • यह व्यक्ति अनुसंधान पद्धति है तथा यह छोटे समूहों या समुदायों के अध्ययन हेतु इस्तेमाल किया जाता है।
  • सहभागी अनुसंधान परोक्ष या प्रत्यक्ष हो सकता है।
  • सहभागी–निरीक्षण मैलिनोवस्की (Malinowski) ने ट्रोब्रिएंड (Trobriand) द्वीप के अपने अध्ययन में सफलतापूर्वक प्रयोग किया गया था।
  • समाजशास्त्र में सहभागी निरीक्षण विलियम फोंटे वाइटें (William Foote Whyte) द्वारा इटली की गंदी बस्तियाँ (An Italian street corner society) के अध्ययन में सफलतापूर्वक प्रयोग किया गया था।

सहभागी प्रेक्षण के लाभ :

  1. यह बहुत अधिक लचीला है। अनुसंधानकर्ता अनजान परिस्थितियों के साथ तालमेल बैठा सकता है एवं किसी मार्गदर्शन का अनुसरण कर सकता हैं जिसकी उत्पत्ति की संभावना बनी रहती है।
  2. यह अनुसंधानकर्ता क्षेत्र में सम्पूर्ण समय व्यतीत करता हैं, इसलिए सहभागी प्रेक्षक अल्पकालीन पद्धतियों की विभिन्न त्रुटियों या पूर्वाग्रहों से बच सकता है।
  3. यह अनुसंधानकर्ता को अध्ययन के अंतर्गत समूह की दृष्टिकोण से वस्तुओं/समस्याओं को अनुसंधान करने की स्वीकृति प्रदान करती हैं।
  4. यह अनुसंधानकर्ता को सामुदायिक जीवन के उस परिदृश्य को जानने का अवसर देता है जिसके संबंध में सदस्यगण सामान्यतया गोपनशील हो सकते हैं।

सहभागी प्रेक्षण के दोष :

  1.  इसको बड़े समूहों के अध्ययन हेतु इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।
  2. यह अनुसंधान पद्धति से ज़्यादा समय व्यतीत होता है।
  3. एक पद्धति के रूप में सहभागी प्रेक्षण का इस्तेमाल करके अध्ययन के निष्कर्ष को बड़ी जनसंख्या हेतु सामान्यीकृत नहीं किया जा सकता है। ये अध्ययन किसी खास वातावरण में लोगों के अनुभवों का केवल व्यापक दस्तावेज है।
  4. इसमें जोखिम यह है कि अनुसंधानकर्ता अध्ययन के द्वारा समुदाय में ज़्यादा शामिल हो सकता है जिससे उसके बाहर का व्यक्ति होने का दृष्टिकोण कम हो सकता है।
  5. इस पद्धति में हमें यह नहीं माना जा सकता है कि यह आवाज़ कहीं मानवविज्ञानी की हैं या उस व्यक्ति की जिसका अध्ययन किया जा रहा हैं। इसकी संभावना हमेशा बनी रहती है कि मानव-विज्ञानी अपनी टिप्पणी में क्या लिखता है तथा यहाँ तक कि किस तरह इसे प्रस्तुत करना हैं, चेतन या अचेतन रूप से चुनाव करता है।

साक्षात्कार :

  1. साक्षात्कार आमने-सामने अंतःक्रिया के द्वारा औचित्यपूर्ण वार्तालाप है।
  2. साक्षात्कार के गुण और दोष।

साक्षात्कार के गुण :

  1. इसमें गलत पहचान की कोई संभावना नहीं रहती हैं।
  2. इसमें प्रश्नों को गंभीरता से लिया जाता है।
  3. यह सम्पूर्ण रूप से स्वीकृत पद्धति।
  4. चेहरे की अभिव्यक्ति से कुछ हद तक भावनाओं की जानकारी होती है।
  5.  इसमें जीवन से संबंधित सभी प्रश्न पूछे जाते हैं।

साक्षात्कार के दोष:

  1. समय व्यर्थ करने वाली पद्धति।
  2. केवल सीमित क्षेत्र और लोग इसके अंतर्गत आ सकते हैं।
  3. खर्चीली।
  4. पूर्वाग्रह और व्यक्तिपरकता (Subjectivity) का प्रभाव।

साक्षात्कार के दो प्रकार :

  1. संस्तरित/संरचनाबद्ध।
  2. असंस्तरित/असंरचनाबद्ध।

समाजशास्त्र में वस्तुनिष्ठता (Objectivity) तथा व्यक्तिपरकता (subjectivity):

  • वस्तुनिष्ठता-ज्ञान का सरोकार तथ्यों से होता है क्योंकि वे आनुभविक हैं। वस्तुनिष्ठता का अर्थ हैं-पूर्वाग्रह रहित, तटस्थ या केवल तथ्यों पर आधारित। इसका अभिप्राय है-वस्तु के बारे में अपनी भावनाओं और मनोवृत्तियों पर ध्यान न देना।
  • व्यक्तिपरकता-ज्ञान तथ्यपरक नहीं हैं। यह व्यक्तिगत भावनाओं तथा मनोवृत्तियों के साथ घुला-मिला रहता हैं। व्यक्तिपरकता का अर्थ हैं-कोई वस्तु जो व्यक्तियों के व्यक्तिगत पूर्वाग्रह तथा मनोवृत्तियों पर आधारित है। यह व्यक्तियों के व्यक्तिगत अनुभवों और समाज में विभिन्न स्थान पर आधारित हैं। सामान्य प्रेक्षण व्यक्तिपरक है।

 

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