ग्रामीण तथा नगरीय समाज में सामाजिक परिवर्तन तथा सामाजिक व्यवस्था

 

ग्रामीण तथा नगरीय समाज में सामाजिक परिवर्तन तथा सामाजिक व्यवस्था
ग्रामीण तथा नगरीय समाज में सामाजिक परिवर्तन तथा सामाजिक व्यवस्था

पाठ 7 - पुनरावृति नोट्स


CBSE कक्षा 11 समाजशास्त्र
पाठ-2 ग्रामीण तथा नगरीय समाज में सामाजिक परिवर्तन तथा सामाजिक व्यवस्था
पुनरावृत्ति नोट्स


स्मरणीय बिन्दु :

  • सामाजिक परिवर्तन- यह ऐसे परिवर्तन है जो कुछ समय पश्चात समाज की अनेक इकाईयों में विविधता लाते हैं तथा इस तरह समाज के माध्यम से मानव संस्थाओं, प्रक्रियाओं, प्रतिमानों, संबंधों, व्यवस्थाओं आदि का स्वरूप पहले जैसा नहीं रह जाता है, यह निरंतर विकास वाली प्रक्रिया है।
  • बाह्य परिवर्तन या संरचनात्मक परिवर्तन- यदि किसी सामाजिक अंग जैसे नातेदारी, वर्ग, जातीय स्तांतरण, परिवार, विवाह, समूहों के स्वरूपों और आधारों में बदलाव को दर्शाता है उसे बाह्य परिवर्तन कहते है।
  • आंतरिक परिवर्तन- किसी युग में आदर्श तथा मूल्य में यदि पिछले युग के मुकाबले कुछ नयापन दिखाई पड़े तो उसे आंतरिक परिवर्तन कहते हैं।
  • सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया के स्वरूप-
    • उद्विकास- परिवर्तन जब धीरे-धीरे सरल से जटिल की तरफ होता है तो उसे 'उद्विकास' कहते हैं।
  • चार्ल्स डार्विन का उद्विकासीय सिद्धांत :
    1. डार्विन के अंतर्गत, शुरू में सभी जीवित प्राणी सरल होते है।
    2. कई शताब्दियों अथवा कभी-कभी सहस्त्राब्दियों में प्राकृतिक वातावरण में अपने आपको ढालकर मनुष्य बदलते रहते है।
    3. डार्विन के सिद्धांत के द्वारा योग्यतम की उतरजीविता के विचार पर जोर दिया। केवल वही जीवधारी रहने में सफल होते हैं जो अपने पर्यावरण के अनुरूप आपको ढाल लेते हैं, जो अपने आपको ढालने में सक्षम नहीं होते तथा ऐसा धीमी गति से करते हैं, लंबे समय में नष्ट हो जाते है।
    4. डार्विन का सिद्धांत प्राकृतिक प्रक्रियाओं को दिखाता है।
    5. इसे शीघ्र ही सामाजिक विश्व में स्वीकृत गया जिसने अनुकूली बदलाव में महत्ता पर जोर दिया।
  • क्रांतिकारी परिवर्तन- परिवर्तन जो तुलनात्मक रूप से शीघ्र अथवा अचानक होता है। इसका इस्तेमाल मुख्यतः राजनीतिक संदर्भ में होता है। जहाँ पूर्व सत्ता वर्ग को विस्थापित कर लाया जाता है। जैसे- फ्रांसीसी क्रांति, 1917 की रूसी क्रांति अथवा औद्योगिक क्रांति, संचार क्रांति आदि।
  • परिवर्तन किसी समाज का सबसे ज़्यादा संरचना तथा सामाजिक संबंधों में बदलाओ से है।
  • अचानक या आकस्मिन परिवर्तनों को क्रान्ति कहा जाता है, यधपि धीरे एवं मंद सामाजिक परिवर्तनों को उद्विकास कहा जाता है।
  • सामाजिक जनसांख्यिकीय, सांस्कृतिक, सामाजिक परिवर्तन, भौतिक और प्रद्योगिकी घटकों के वजह से घटित होता है।
  • जनसंख्या में विकास प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल पर अच्छा प्रभाव डालती है, जो सामाजिक परिवर्तन की वजह भी है।
  • विकास, उन्नति, उद्विकास तथा क्रांति सामाजिक परिवर्तन के विविध स्वरूप हैं।
  • सामाजिक परिवर्तन की विस्तृत अवधारणा है। इसमें समाज के सभी भाग; जैसे-राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और भौतिक सम्मिलित है।  सम्पूर्ण रूप से सामाजिक परिवर्तन के पाँच बृहत्त स्रोत हैं- प्रौद्योगिकीय, आर्थिक, पारिस्थितिकीय, राजनैतिक तथा सामजिक परिवर्तन।
  • मूल्यों और विश्वासों में परिवर्तन भी परिवर्तन के मार्ग को सुगम बनाते हैं।
  • भौतिक पर्यावरण तथा पारिस्थितिकी समाज की संरचना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उदाहरण,  कमजोर आर्थिक स्थितियाँ वैसे भौगोलिक क्षेत्रों में अपरिहार्य हैं, जहाँ प्राकृतिक विपदाओं को सामान्य रूप में देखा जाता है।
  • प्रौद्योगिकी प्रकृति संबंधों में परिवर्तन लाती है। यह प्रकृति जनित समस्याओं के अनुकूलन में हमारी मदद करती हैं। उदाहरणार्थ, सामान्यतया पहाड़ी और ठंडा प्रदेश होने के कारण जापान ने विद्युतीय और इलैक्ट्रोनिक उपकरणों के विकास में विशिष्टता हासिल की।
  • मूल्यों तथा मान्यताओं में परिवर्तन: (उदाहरण- बाल श्रम)-
    • 19वीं शताब्दी के अंत में यह माना जाने लगा कि बच्चे जितना जल्दी हो काम पर लग जाएँ। प्रारंभिक फैक्ट्री व्यवस्था बच्चों के श्रम पर आश्रित थी। बच्चे पाँच अथवा छह वर्ष की आयु से ही काम प्रारंम्भ कर देते थे।
    • 20वीं शताब्दी के दौरान अनेक देशों ने बाल श्रम को कानून की सहायता से बंद किया गया।
    • यद्यपि कुछ ऐसे उद्योग हमारे देश में है जो आज भी श्रम पर कम-से-कम आंशिक रूप से आश्रित है। जैसे दरी बुनना, छोटी चाय की दुकानें, रेस्तरों, माचिस बनाना इत्यादि।
    • बाल श्रम, गैर कानूनी है तथा मालिकों को मुजरिमों के रूप में सजा हो सकती है।
  • सामाजिक परिवर्तन के प्रकार के स्त्रोत अथवा कारण :
    • राजनीतिक
    • सांस्कृतिक
    • पर्यावरण
    • तकनीकी/आर्थिक
  • पर्यायवरण तथा सामाजिक परिवर्तन :
    1. पर्यायवरण सामाजिक परिवर्तन लाने में एक प्रभावकारी कारक है।
    2. भौतिक पर्यायवरण सामाजिक परिवर्तन को एक गति देता है। मनष्य प्रकृति के प्रभावों को रोकने अथवा झेलने में अक्षम था। उदाहरण, मरूस्थलीय वातावरण में रहने वाले लोगों के लिए एक स्थान पर रहकर कृषि करना संभव नहीं था, जैसे मैदानी भागों अथवा नदियों के किनारे। नदी या समुद्र के समीप नगरों का विस्तार बड़े पैमाने पर होता है क्योंकि व्यावसायिक गतिविधियों को गति देने के लिए समुद्री या जल मार्ग यातायात ज़्यादा सुविधाजनक एवं सस्ता पड़ता है।
    3. भौगोलिक पर्यायवरण या प्रकृति समाज को पूर्णरूपेण बदलकर रख देते हैं। ये बदलाव अपरिवर्तनिय होते है अर्थात् ये स्थायी होते हैं अर्थात ये स्थायी हैं तथा वापस अपनी पूर्वस्थिति में नहीं आने देते है।
      उदाहरण- प्राकृतिक आपदाएँ जैसे भूकम्प, बाढ़, तूफान, सूखा, अकाल, महामारी अादि।
  • तकनीक/अर्थव्यवस्था और सामाजिक परिवर्तन :
    1. भौतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए व्यक्ति जिस उन्नत प्रविधि का प्रयोग करते है, उसी को प्राद्योगिकी कहते हैं। जैसे- बल्ब, पहिया, वाष्प इंजन, रेलगाड़ी, उपकरण, आदि जिनसे उत्पादन प्रणाजी और अर्थव्यवस्था में भारी बदलाव आया एवं सामाजिक परिवर्तन हुआ।
    2. तकनीकी क्रांति से औद्योगीकरण, नगरीकरण, उदारीकरण, जैसे क्षेत्रों को बढ़ावा मिला। उदाहरण- ब्रिटेन के कपड़ा उद्योग में होने वाले तकनीकी प्रयोग। नवीन सूत कातने तथा बुनने की मशीनों ने भारतीय उपमहाद्वीपों से हथकरघा को नष्ट कर दिया जो पुरी दुनिया में सबसे व्यापक तथा उच्चस्तरीय था।
    3. प्रत्यक्ष तकनीकी परिवर्तन कई बार भी आर्थिक व्यवस्था के द्वारा समाज को बदल सकते हैं। उदाहरण- रोपण कृषि, जहाँ बड़े पैमाने पर नकदी फसलों जैसे- गन्ना, चाय, कपास की खेती की जाती है, ने श्रम हेतु भारी माँग उत्पन्न की।
    4. दासों का व्यापार 17वीं से 19वीं शताब्दी में शुरू किया हुआ।
  • राजनीतिक ओर सामाजिक परिवर्तन :
    1. राजनीतिक शक्ति के द्वारा ही सामाजिक बदल हुए है।
    2. विश्व के इतिहास में अनेको उदाहरण ऐसे हैं कि जब कोई देश से युद्ध में विजयी होता था तो उसका पहला काम वहाँ की सामाजिक व्यवस्था को अच्छा बनाना होता हैं। अपने शासनकाल के समय अमेरीका ने जापान में भूमि सुधार एवं औद्योगिक वृद्धि के साथ-ही-साथ विविध परिवर्तन हुए।
    3. राजनीतिक परिवर्तन हमें केवल अन्तराष्ट्रीय पटल ही नहीं अपितु हम अपने देश में भी देख सकते हैं।
    4. उदाहरण:-
      1. ब्रिटिश शासन को भारत द्वारा बदल डालना एक निर्णायक सामाजिक परिवर्तन था।
      2. वर्ष 2006 में नेपाली जनता ने नेपाल में "राजतंत्र" शासन व्यवस्था को ठुकरा दिया।
      3. "सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार" राजनैतिक परिवर्तन को इतिहास में अकेला सबसे बड़ा परिवर्तन है।
      4. "सार्वभौमिक वयस्क मताधिकारी"  अर्थात् 18 या 18 वर्ष से ज्यादा उम्र के व्यक्तियों को मत देने का अधिकार है।
  • संस्कृति और सामाजिक परिवर्तन :
    1. व्यक्ति के व्यवहारों या कार्यों में जब बदलाव आता है तो जीवन में सांस्कृतिक परिवर्तन होता है।
    2. धर्म का प्रभाव, सामाजिक- सांस्कृतिक संस्था पर विशेष से देखने में आता है। उदाहरण- प्राचीन भारत को साजिक तथा राजनैतिक जीवन पर बौद्ध धर्म का प्रभाव।
    3. धार्मिक मान्यताएँ तथा मानदंडों ने समाज को व्यवस्थित करने में मदद दी तथा यह बिल्कुल आश्चर्यजनक नहीं हैं कि इन मान्यताओं में परिवर्तन ने समाज को बदलने में मदद की।
    4. समाज में महिलाओं की स्थिति को सांस्कृतिक उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है जैसे- द्वितीय विश्वयुद्ध के समय पाश्चात्य देशों में महिलाओं ने कारखानों में काम करना प्रारंभ कर दिया जो पहले कभी नहीं हुआ, भारी मशीनों को चला सकती थी, महिलाएँ जहाज बना सकती थी, हथियार आदि का निर्माण कर सकत थीं।
  • सामाजिक व्यवस्था-
    • सामाजिक परिवर्तन को सामाजिक व्यवस्था के साथ ही समझा जा सकता है। सामाजिक व्यवस्था तो एक व्यवस्था में एक प्रवृत्ति होती है जो परिवर्तन का विरोध करती है तथा उसे नियमित करती है।
    • सामाजिक व्यवस्था का अर्थ है किसी विशेष प्रकार के सामाजिक संबंधों, मूल्यों तथा परिमापों को तीव्रता से बनाकर रखना तथा उनको दोबारा बनाते रहना।
    • सामाजिक व्यवस्था को दो प्रकार से प्राप्त किया जा सकता है-
      1. समाज में सदस्य अपनी इच्छा से नियमों तथा मूल्यो के अनुयसार कार्य करें।
      2. लोगों को अलग-अलग ढंग से इन नियमों तथा मूल्यों को मानने के लिए बाध्य किया जाए।
      3. प्रत्येक समाज सामाजिक व्यवस्था को बनाये रखने के लिए इन दोनों प्रकारों के मिश्रण का इस्तेमाल करता है।
    • सामाजिक व्यवस्था- असहमति, अपराध, हिंसा, प्रभाव, सत्ता, सहयोग तथा असहयोग प्रदान करने वाले तत्व।
  • प्रभाव, सत्ता तथा कानून :
    • मानवीय संरचना के अंतर्गत मनुष्य की क्रियाएँ ही होती हैं। हर समूह में सत्ता के तत्व मूल रूप से विमान रहते हैं। संगठित समूह में कुछ साधारण सदस्य होते हैं तथा कुछ ऐसे सदस्य होते हैं जिनके पास जिम्मेदारी होती है उनके पास ही सत्ता भी होती है। शक्ति, प्रभुता का दूसरा नाम है।
    • मैक्स बेवर के विचारानुसार, समाज में सत्ता विशेष रूप से आर्थिक आधारों पर ही निर्धारित होती है यद्यपि आर्थिक कारक सत्ता के निर्माण में एकमात्र नहीं कहा जाता है। जैसे उत्तर भारत की प्रभुता सम्पन्न जातियाँ।
    • सत्ता, प्रभाव तथा कानून से गहरे रूप से संबंधित है।
      • प्रभुत्व की धारणा शक्ति से संबंधित है तथा शक्ति सत्ता में निहित होती है।
      • सत्ता का एक महत्वपूर्ण कार्य कानून का निर्माण करना तथा तथा शक्ति सत्ता में निहित होती है।
      • कानून नियमों की एक व्यवस्था है जिसके द्वारा समाज में सदस्यों को नियंत्रित तथा उनके व्यवहारों को नियमित किया जाता है।
    • सत्ता के प्रकार :
      • कानूनी सत्ता- जो कानून से प्राप्त हो
      • करिश्मात्मक सत्ता- जादूगर, कलाकार, पीर, धार्मिक गुरुओं को प्राप्त सत्ता
      • परम्परात्मक सत्ता- जो परम्परा से प्राप्त हो।
  • अपराध तथा हिंसा
    • अपराध वह कार्य होता है जो समाज में चल रहे प्रतिमानों तथा आदशों के विरूद्ध किया जाए। अपराधी वह व्यक्ति होता है जो समाज द्वारा स्थापित नियमों के विरूद्ध कार्य करता है। जैसे युवाओं में पाई जाने वाली दोहरी संस्कृति, वस्त्रों के फैशन से लेकर जीवनशैली तक।
    • अपराध से समाज में विघटन आता है क्योंकि अपराध समाज तथा सामाजिक व्यवस्था के विरूद्ध किया गया कार्य है।
    • हिंसा सामाजिक व्यवस्था को शत्रु है तथा विरोध का उग्र रूप है जो मात्र कानून की ही नहीं बल्कि महत्वपूर्ण सामाजिक मानदंडों का भी अतिक्रमण करती है। समाज में हिंसा सामाजिक तनाव का प्रतिफल है तथा गंभीर समस्याओं की उपस्थिति को दर्शाती है। यह राज्य की सत्ता को चुनौती भी है।
      ग्रामीण तथा नगरीय समाज में सामाजिक परिवर्तन तथा युवा वर्ग में बढ़ते अपराध और हिंसा व्यवस्था के कारण-
      1. फिल्मों का प्रभाव
      2. नशा
      3. लोगों में भय पैदा करना
      4. बढ़ती हुई महंगाई
      5. बेरोजगारी
      6. बदले की भावना
  • गाँव कस्बों और नगरों में सामाजिक व्यवस्थरा का परिवर्तन-
    • गाँव- जिस भौगोलिक क्षेत्र में जीवन कृषि पर आधारित होता है, जहाँ प्राथमिक संबंधों की होती है बहुतायत तथा जहाँ कम जनसंख्या के साथ आसानी होती है उसे गाँव कहते है।
    • नगरीकरण- यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें जनसंख्या का बड़ा भाग को छोड़कर नगरों एंव कस्बों की तरफ पलायन करना है।
    • कस्बा- कस्बे को नगर का छोटा रूप कहा जाता है जो क्षेत्र से बड़ा होता है लेकिन नगर से छोटा होता है।
    • नगर- यह एक भौगोलिक क्षेत्र होता है जहाँ लोग कृषि के स्थान पर अनेक प्रकार के कार्य करते हैं। जहाँ द्वितीयक संबंधों की भरमार होती है। तथा अधिक जनसंख्या के साथ जटिल संबंध भी पाये जाते हैं।
    • आर्थिक तथा प्रशासनिक शब्दों में ग्रामीण तथा नगरीय बनावट कि दो मुख्य आधार हैं-
      1. जनसंख्या का घनत्व
      2. कृषि
  • ग्रामीण तथा नगरीय समुदायों में अन्तर :-
    ग्रामीण क्षेत्रनगरीय क्षेत्र
    1. गाँव का आकार छोटा होता है।1. गाँव का आकार बड़ा होता है।
    2. सम्बन्ध व्यक्तिगत होते हैं।2 व्यक्तिगत सम्बन्ध होते हैं।
    3.सामाजिक परिवर्तन धीमा है।3. सामाजिक परिवर्तन तीव्र है।
    4. सामाजिक संस्थाएं जैसे- जाति, धर्म, प्रथाएं अधिक प्रभावशाली हैं।4.सामाजिक संस्थाएं जैसे- जाति, धर्म, प्रथाएं अधिक प्रभावशाली नहीं हैं।
    5. मुख्य व्यवस्था कृषि है।5. कृषि के अलावा सभी व्यवसाय हैं।
    6.जनसंख्या का घनत्व कम है।6.जनसंख्या का घनत्व ज्यादा है।
  • ग्रामीण क्षत्र और सामाजिक परिवर्तन :
    1. संचार के नवीन साधनों के परिवर्तन अतः सांस्कृतिक पिछड़ापन न के बराबर।
    2. भू-स्वामित्व में परिवर्तन- प्रभावी जातियों का निर्माण।
    3. प्रबल जाति- जो सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक समाज में शक्तिशाली।
    4. कृषि की पुरानी प्रणाली में परिवर्तन, नई मशीनरी के इस्तेमाल ने जमींदार और मजदूरों के मध्य की खाई को बढ़ाया।
    5. कृषि की कीमतों में सूखा, उतार-चढ़ाव और बाढ़ किसानों को आत्महत्या करने पर मजबूर कर दिया।
    6. निर्धन ग्रामीणों के विकास हेतु सरकार ने 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना अधिनियम कार्यक्रम आरम्भ किया।
  • नगरीय क्षेत्र और सामाजिक परिवर्तन :
    1. प्राचीन नगर अर्थव्यवस्था को सहयोग देते थे।
      उदाहरण-
      1. धार्मिक स्थल जैसे राजस्थान में अजमेंर, उत्तर प्रदेश में वाराणसी ज़्यादा प्रसिद्ध थे।
      2. जो नगर पतन तथा बंदरगाहों के किनारे बसे थे व्यापार की दृष्टि से लाभ की स्थिति में थे।
    2. जनसंख्या का घनत्व ज़्यादा होने से निम्नलिखित समस्याएं सामने आती हैं- असवास, गंदी बस्तियाँ, गंदगी,बेरोजगारी, अपराध, जनस्वास्थ्य, (सफाई, पानी, बिजली का अभाव), प्रदूषण।
    3. नगरीय परिवहन- सरकारी परिवहनों की बजाय निजी संसाधनों का उपयोग जिससे ट्रैफिक तथा प्रदूषण की समस्याएँ पैदा होती हैं।
      पृथक्कीकरण- यह एक प्रक्रिया है जिसमें नृजाति, धर्म, समूह, प्रजाती और अन्य कारकों द्वारा वर्गीकरण होता है।
      घैटोकरण या बस्तीकरण- समान्यतः यह शब्द मध्य यूरोपीय शहरों में यहूदियों की बस्ती हेतु उपयोग किया जाता है। आज के सन्दर्भ में यह विशिष्ट धर्म, नृजाति, जाति या समान पहचान वाले लोगों के साथ रहनें को दिखाता है।
      घैटोकरण की प्रक्रिया में मिश्रित विशेषताओं वाले पड़ोस स्थान पर एक समुदाय पड़ोस में बदलाव का होना है।
      समूह संक्रमण- शहरों में आवागमन का साधन जिसमें बड़ी संख्या में लोगों का आना जाना होता हैं जैसे- मैट्रो।

 

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