शक वंश |
शक वंश(toc)
शक प्राचीन आर्यों के वैदिक कालीन सम्बन्धी रहे हैं जो शाकल द्वीप पर बसने के कारण शाक अथवा शक कहलाये. भारतीय पुराण इतिहास के अनुसार शक्तिशाली राजा सगर द्वारा देश निकाले गए थे व लम्बे समय तक निराश्रय रहने के कारण अपना सही इतिहास सुरक्षित नहीं रख पाए। हूणों द्वारा शकों को शाकल द्वीप क्षेत्र से भी खदेड़ दिया गया था। जिसके परिणाम स्वरुप शकों का कई क्षेत्रों में बिखराव हुआ।
पुराणों में इस जाति की उत्पत्ति सूर्यवंशी राजा नरिष्यंत से कही गई है। राजा सगर ने राजा नरिष्यंत को राज्यच्युत तथा देश से निर्वासित किया था। वर्णाश्रम आदि के नियमों का पालन न करने के कारण तथा ब्राह्मणों से अलग रहने के कारण वे म्लेच्छ हो गए थे। उन्हीं के वंशज शक कहलाए।
यूनानियों के बाद शक आए।शक मूलतः मध्य एशिया के निवासी थे।
शकों की 5 शाखाएं थी और हर शाखा की राजधानी भारत और अफगानिस्तान में अलग-अलग भागों में थी।
पहली शाखा ने अफगानिस्तान, दूसरी शाखा ने पंजाब (राजधानी तक्षशिला ) , तीसरी शाखा ने मथुरा, चौथी शाखा ने पश्चिम भारत एवं पांचवी शाखा के उपरी दक्कन पर प्रभुत्व स्थापित किया।
58 ईसापूर्व में उज्जैन के विक्रमादित्य द्वितीय ने शकों को पराजित कर के बाहर खदेड़ दिया और विक्रमादित्य की उपाधि धारण की।
शकों की अन्य शाखाओं की तुलना में दक्षिण भारत में प्रभुत्व स्थापित करने वाली शाखा ने सबसे लंबे अरसे तक शासन किया।
शकों का सबसे प्रतापी शासक रुद्रदामन प्रथम था जिसका शासन गुजरात के बड़े भूभाग पर था। रुद्रदामन प्रथम ने काठियावाड़ की अर्धशुष्क सुदर्शन झील (मौर्य द्वारा निर्मित) का जीर्णोद्धार किया।
भारत में शक राजा अपने को छत्रप कहते थे।