समाजशास्त्र एवं समाज |
पाठ 1 - पुनरावृति नोट्स
CBSE कक्षा 11 समाजशास्त्र
पाठ-1 समाजशास्त्र एवं समाज
पुनरावृत्ति नोट्स
स्मरणीय बिन्दु-
- समाज- 'समाजशास्त्र' शब्द की उत्पत्ति मिश्रित विधा के रूप में इसके स्वरूप को इंगित करने के लिए लैटिन (Latin) के शब्द 'Socius' (समाज) एवं ग्रीक (Greek) के शब्द 'Ology' (विज्ञान/शास्त्र) के संयोग से हुई हैं। समाज, सामाजिक संबंधों का जाल है। समाज व्यक्तियों का एक समूह है। इन व्यक्तियों की संस्कृति समरूप होती है एवं एक निश्चित भू-भाग में निवास करते हैं और एक समान इतिहास द्वारा एक-दूसरे से बँधे होते हैं। समाज न केवल जीवित रहने के लिए, बल्कि अच्छे जीवन के लिए भी अनिवार्य है। समाज एक निरंतर प्रक्रिया है। यह व्यक्तियों पर थोपा नहीं गया है। यह किसी प्राकृतिक प्रक्रिया की तरह आगे बढ़ता है। सामाजिक संबंध सामाजिक संरचना का आधार है। समाज को निरपेक्ष एवं प्रत्यक्ष स्वरूपों में समझा जा सकता है। समाज की मुख्य विशिष्टता परस्पर निर्भरता, सहयोग व विरोध, आपसी समझ, समानता व विविधता, संबंध के संदर्भ में निरपेक्षता तथा प्राकृतिक गतिशीलता है।
- फ्रांसीसी दार्शनिक अगस्त कॉम्टे ने 1838 ई० में समाजशास्त्र (Sociology) शब्द का निर्माण किया तथा इसे मानव समाज का विज्ञान कहा। अतः उन्हें समाजशास्त्र का जनक या संस्थापक समझा जाता है। एक स्वतंत्र विधा के रूप में समाजशास्त्र के विकास में दुखाइम स्पेंसर (Durkheim Spencer) एवं मैक्स वेबर (Max Weber) के योगदान महत्त्वपूर्ण हैं।
- समाजशास्त्र की उत्पत्ति-
- समाजशास्त्र का जन्म 19वीं शताब्दी में हुआ।
- समूह के क्रिया-कलापों में भाग लेने के लिए आवश्यक है कि समस्याओं को सुलझाया जाए। इन्हीं प्रयत्नों के परिणामस्वरूप ही समाजशास्त्र की उत्पत्ति हुई है।
- 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में फ्रांस के विचारक अगस्त कॉम्ट ने समाजशास्त्र का नाम सामाजिक भौतिकी रखा और 1838 में बदलकर समाजशास्त्र रखा। इस कारण से कॉम्ट को "समाजशास्त्र का जनक" कहा जाता है।
- समाजशास्त्र को एक विषय के रूप में विकसित करने में दुर्खीम, स्पेंसर तथा मैक्स वेबर आदि विद्वानों के विचारों का काफी रहा है।
- भारत में समाजशास्त्र के उद्भव का विकास का इतिहास प्राचीन है।
- समाज की प्रमुख विशेषताएँ-
- समाज अमूर्त है : समाज का कोई व्यवस्थित आयकर नहीं है।
- आश्रित रहने का नियम : प्रत्येक समाज में सभी सदस्य एक-दूसरे पर आश्रित होते है।
- समाज परिवर्तनशील : व्यक्ति जीवन विकासशील होता है इसलिए समाज भी परिवर्तनशील होता है।
- समाज में समानता व भिन्नता : प्रत्येक समाज में विभिन्न समानताये व असमानताएं होते है यह धर्म, जाति, भाषा, पहनावा, खानपान आदि पर आधारित होती है।
- पारस्परिक सहयोग एवं संघर्ष : समाज में भिन्नताओं के कारण संघर्ष की स्थिति बनी रहती है तथा इसके साथ ही सहयोग के द्वारा समाज परिवर्तनशील रहता है।
- व्यक्ति और समाज में संबंध / मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है:
- मनुष्य के क्रियाकलाप समाज से संबंधित है उसका अस्तित्व और विकास समाज पर ही निर्भर करता है।
- समाज द्वारा मानव शरीर को सामाजिक विशेषताओं या गुणों से व्यक्तित्व प्रदान करना होता है।
- व्यक्तियों के बिना सामाजिक संबंधों की व्यवस्था नहीं पनप सकती तथा न ही सामाजिक संबंधों की व्यवस्था के बिना समाज का अस्तित्व संभव है।
- इस दृष्टि से व्यक्ति पूर्ण रूप से समाज पर निर्भर है।
- समाजों में बहुलताएँ एवं असमानताएँ
- प्रत्येक समाज एक-दूसरे से भिन्न होता है।
- आधुनिक समय में हम एक से अधिक समाज के सदस्य बनते जा रहे है।
- हम दूसरे समाजों से अंतःक्रिया करते हैं,एवं उन समाजो की संस्कृति को ग्रहण करते हैं।
- इस तरह आज हमारी संस्कृति एक मिश्रित संस्कृति को ग्रहण करते हैं।
- इस तरह आज हमारी संस्कृति एक मिश्रित संस्कृति एवं हमारा समाज एक बहुलवादी समाज (एक से ज्यादा समाज) में बदलता जा रहा है।
- हमारे समाज में असमानता समाजों के मध्य केंद्रीय बिंदु है।
- उदाहरण: अमीर व गरीब
- मानव एक सामाजिक प्राणी हैं। हम सभी का किसी-न-किसी संस्कृति से संबंध है, जो व्यक्तित्व विकास हेतु व्यक्तियों की जीवन-निर्वाह प्रक्रिया कों निर्धारित करती है। समाज किसी खास प्रक्रिया की विशेष रूप से बढ़ावा देता हैं, जिसमें व्यक्ति संबंध अनेक आयामों (स्वरूपों) को विकसित करता है।
- इस परिप्रेक्ष्य में मानव-समाज, पशु-समाज से अलग है। मानव प्राणियों की अपनी संस्कृति और गतिशील संचार व्यवस्था है, यधपि पशु-समाज की न कोई संस्कृति होती हैं तथा न संचार का कोई गतिशील स्वरूप ही। पशुओं का व्यवहार शिक्षाप्रद होता है, इसके विपरीत हम सभी सामाजिक प्राणी हैं। मानव समाज गतिशील एवं पारस्परिक निर्भरता पर आधारित है, जिसका औचित्य, (interact) समरूप (समान) हैं तथा आपस में अंतःक्रिया करता है, जबकि पशु समाज गतिहीन होता है।
- समाजशास्त्र: समाजशास्त्र, सामाजिक संबंधों का व्यवस्थित व क्रमबद्ध तरीके से अध्ययन करने वाला विज्ञान है।
- समाजशास्त्र
- समष्टि समाजशास्त्र- बड़े समूहों, संगठनों तथा सामाजिक व्यवस्थाओं का अध्ययन करना।
- व्यष्टि समाजशास्त्र- आमने-सामने की अंतः क्रिया के संदर्भ में मनुष्यों के व्यवहार अध्ययन।
- समाजशास्त्र समाज का वैज्ञानिक एवं समग्र अध्ययन का विषय है।
- कुछ मुख्य विचारको द्वारा समाजशास्त्र की परिभाषाएं :
- 1.)इमाइल दुर्खाइम (Emile Durkheim) के अनुसार, समाजशास्त्र सामूहिक प्रतिनिधानों (Collective representation) का विज्ञान है। मानव व्यक्तित्व; जैसे-ज्ञानात्मक चिंतन (Cognitive thinking), क्रियात्मक व्यवहार (Conative behaviour) तथा प्रभावित आवेश (Affective feeling) में सामाजिक तथ्यों का समावेश है। ये सामाजिक तृथ्य मानव मस्तिष्क के बाह्य आयाम हैं, जो सामाजिक तंत्र के सुपोषण हेतु मानव व्यवहारों को नियंत्रित करते हैं। दुखाइम (Durkheim) के अंतर्गत, "सभी सामाजिक तथ्यों में समाजशास्त्र की विषय-वस्तु अंतर्विष्ट (समाहित) है।"
- 2.)हॉबहाउस (Hobhouse) के अनुसार, "समाजशास्त्र मानव मस्तिष्क की अंतःक्रियाओं का अध्ययन है।"
- 3.)पार्क (Park) और बर्गेस (Burgese) ने अनुसार, "समाजशास्त्र सामूहिक व्यवहारों के अध्ययन का विज्ञान हैं।"
- 4.)मैंक्स वेबर (Max Weber) का अंतर्गत, "मानवीय क्रियाओं का लक्ष्य निर्धारित होता है, जिससे उद्देश्यों की प्राप्ति होती हैं। सभी मानव प्राणी दिए गए उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु कार्यों में लगे रहते हैं।"
- समाजशास्त्रीय अभिरुचि के उद्देश्यों की तीन सामान्य संकल्पनाएँ हैं:
- सामूहिक प्रतिनिधित्व (Collective Representations)- ज्ञानात्मक रूप से (Cognitively) विश्व को सुव्यवस्थित करने के अर्थ एवं साधन, जिनका उन व्यक्तियों के अतिरिक्त, जिन्हें उसमें सामाजीकृत किया गया हैं, अपना निरंतर अस्तित्व है।
- संबंधों के प्रतिमान के अर्थ में 'सामाजिक संरचना' (Social structure)-जिसका व्यक्तियों और समूहों के अतिरिक्त स्वतंत्र अस्तित्व है। किसी खास समय में ये व्यक्ति और समूह इस सामाजिक संरचना में स्थान ग्रहण करते हैं।
- अर्थपूर्ण सामाजिक व्यवहार (Meaningful social Action)- इस विचार के अनुसार, समाज नाम की कोई चीज नहीं है। केवल व्यक्ति एवं समूह सामाजिक संबंधों को कायम करने के लिए एक-दूसरे के साथ अंतःक्रिया करतें हैं।
- समाजशास्त्र विशिष्टीकरण (Specialisation) की अपेक्षा सामान्यीकरण (Generalisation) का विज्ञान है। यह मानव समूहों, सामाजिक क्रियाओं, समाजों तथा उनकी संरचनाओं का सामान्यतः सामान्यीकरण करता है। यह बुद्धिसंगत (Rational) तथा अनुभूतिमूलक (Empirical) दोनों विज्ञान है। यह तथ्यों का संग्रह करता है, उन्हें वर्गीकृत करता है तथा उनके परस्पर संबंधों को प्राप्त करता है, जिसका न्यूनतम त्रुटि तथा अधिकतम पूर्णता के साथ अनुभूतिमूलक प्रमाणों (Empirical evidence), के द्वारा सत्यापन (Verification) किया जाता है।
- समाजशास्त्र समाज का विश्लेषण करता है। इसका केंद्रबिंदु समाज का उद्भव है। यह मुख्य सामाजिक इकाइयों और उसकी गतिशीलता की व्याख्या करता है।
- समाजशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र को निर्धारित करने के संबंध में दो संप्रदाय पाए जाते हैं:
- स्वरूपात्मक सम्प्रदाय (Formal School)-इस सम्प्रदाय के अनुसार समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों के विशेष स्वरूपों (आकारों) का अध्ययन हैं। इस उपागम (Approach) के प्रमुख समर्थक वेबर (Weber), साइमल (Simmel), विवरकान्ट वार्ड (Viverkandt Ward) एवं वॉन वाइस (Von Wiese) हैं।
- समन्वयात्मक सम्प्रदाय (synthetic School)-यह सम्प्रदाय सामाजिक विज्ञान की आवश्यकता पर मुख्य रूप से जोर देता है, जोकि सामाजिक जीवन की सामान्य स्थितियों का अध्ययन करता हैं। यह समाज का समग्र रूप में अध्ययन करता है। दुर्खिम (Durkheim), हॉबहाउस (Hobhoure) एवं सॉरोकिन (Sorokin) इस सम्प्रदाय के प्रमुख विचारक हैं।
- भारत में समाजशास्त्र के अध्ययन के अध्ययन की आवश्यकता-
- भारत में व्याप्त क्षेत्रवाद, भाषावाद, सम्प्रदासवाद, जातिवाद आदि समस्याओं को व्यवस्थित ढंग से सुलझाने के लिए समाजशास्त्रीय अध्ययन आवश्यक है।
- इसी कारण, भारत में विभिन्न समस्याओं के समाधान हेतु समाजशास्त्र का अध्ययन अधिक लोकप्रिय होता जा रहा है।
- दूसरे समाजो के साथ तुलनात्मक अध्ययन होता है।
- सामाजिक गतिशीलता के बारे में पता चलता है।
- समाजशास्त्र की प्रकृति की मुख्य विशेषताएँ-
- समाजशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है, न कि प्राकृतिक विज्ञान।
- समाजशास्त्र एक निरपेक्ष विज्ञान है, न कि आदर्शात्मक विज्ञान।
- समाज अपेक्षाकृत एक अमूर्त विज्ञान है, न कि मूर्त विज्ञान।
- समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है, न कि विशेष विज्ञान।
- बौद्धिक विचार जिनकी समाजशास्त्र की रचना में भूमिका है:
प्राकृतिक विकास के वैज्ञानिक सिद्धांतों और प्राचीन यात्रियों द्वारा पूर्व आधुनिक सभ्यताओं की खोज से प्रभावित होकर उपनिवेशी प्रशासकों, समाजशास्त्रियों एवं सामाजिक मानवविज्ञानियों ने समाजों के बारे में इस दृष्टिकोण से विचार किया कि उनका विभिन्न प्रकारों में वर्गीकरण किया जाए ताकि सामाजिक विकास के विभिन्न चरणों को पहचाना जा सके। - सरल समाज एवं जटिल समाज-
- समाज का स्वरूप सरल एवं जटिल हो सकता है। यह मनुष्यों के लिए स्वाभाविक है। हम सभी सामाजिक प्राणी हैं। समाज के बिना हमारा जीवित रहना असंभव है। मनुष्य अपने उद्देश्यों की प्राप्ति अकेला नहीं कर सकता। हमें समाज की आवश्यकता होती हैं। समाज हमें सुरक्षा, नातेदारी, पहचान (विशिष्टता) एवं अपनापन का भाव प्रदान करता है।
- भारत स्वयं परंपरा और आधुनिकता का, गाँव और शहर का, जाति और जनजाति का, वर्ग एवं समुदाय का एक जटिल मिश्रण है।
- सरल समाज में श्रम विभाजन नहीं होता जबकि जटिल समाज देखने को मिलता है।
- 19वीं शताब्दी में समाजों का वर्गीकरण किया गया-
- आधुनिक काल से पहले के समाजों के प्रकार जैसे- शिकारी टोलियाँ एवं संग्रहकर्ता, चरवाहे एवं कृषक, कृषक एवं गैर औद्योगिक सभ्यताएँ (सरल समाज)।
- आधुनिक समाजों के प्रकार, जैसे-औद्योगिक समाज (जटिल समाज)
- डार्विन के जीव विकास के विचारों का आरंभिक समाजशास्त्रिय विचारों पर दृढ़ प्रभाव था।
- ज्ञानोदय, एक यूरोपीय बौद्धिक आंदोलन जो सत्रहवीं शताब्दी के अंतिम वर्षों एवं अट्ठारहवीं शताब्दी में चला, कारण और व्यक्तिवाद पर बल देता है।
- भौतिक मुद्दे जिनकी समाजशास्त्र की रचना में भूमिका है।
- औद्योगिक क्रांति से आए बदलाव एवं पूँजीवाद-
- औद्योगिक क्रांति एक नए गतिशील आर्थिक क्रियाकलाप-पूँजीवाद पर आधारित थी। पूँजीवाद-आर्थिकद्यम की एक व्यवस्था जोकिबाजार विनिमय पर आधारित है। यह व्यवस्था उत्पादन के साधनों और सम्पत्तियों के निजी स्वामित्व पर आधारित है। औद्योगिक उत्पादन की उन्नति के पीछे यही पूंजीवादी व्यवस्था एक प्रमुख शक्ति थी।
- उद्यपी निश्चित और व्यवस्थित मुनाफे की आशा से प्रेरित थे।
- बाजारों ने उत्पादनकारी जीवन में प्रमुख साधन की भूमिका अदा की। और माल, सेवाएँ एवं श्रम वस्तुएँ बन गई जिनका निर्धारण तार्किक गणनाओं के द्वारा होता था।
- इंग्लैण्ड औद्योगिक क्रांति का केंद्र था। औद्योगीकरण द्वारा आया परिवर्तन असरकारी था।
- औद्योगीकरण से पहले, अंग्रेजों का मुख्य पेशा खेती करना एवं कपड़ा बनाना था। अधिकाँश लोग गाँवों में रहते थे जोकि कृषक, भू-स्वामी, लोहार एवं चमड़ा श्रमिक, जुलाहे, कुम्हार, चरवाहे थे समाज छोटा था। यह स्तरीकृत था। लोगों की स्थिति उनका वर्ग परिभाषित था।
- औद्योगीकरण के साथ-साथ शहरी केंद्रों का विकास एवं विस्तार हुआ। इसकी निशानी थी, फैक्ट्रियों का धुआँ और कालिख, नई औद्योगिक श्रमिक वर्ग की भीड़भाड़ वाली बस्तियाँ, गंदगी और सफाई का नितांत अभाव।
- अंग्रेजी कारखानों के मशीनों द्वारा तैयार माल के आगमन से भारित तादाद में भारतीय दस्तकार बर्बाद हो गए क्योंकि अत्याधिक विकसित कारखानों में उनकी खपत नहीं हो सकती थी। इन बर्बाद दस्तकारों ने मुख्यतः जीवन निर्वाह के लिए खेती को अपना लिया।
- समाजशास्त्र की अन्य सामाजिक विज्ञानों के मध्य स्थिति एक दृष्टि में-
- सभी सामाजिक विज्ञान समाजशास्त्र से किसी रूप से संबंधित है तथा दूसरी और अलग भी है।
- सभी सामाजिक विज्ञानों का क्षेत्र में भिन्नता है, तथा इन सभी का केंद्र बिंदु सामाजिक प्राणी मानव है।
- इनके आपसी प्रोत्साहन के द्वारा ही अनेक क्षेत्रों का अध्ययन सुचारू रूप से संभव है।
- समाजशास्त्र एक सहयोगी व्यवस्था का निर्माण करता है तथा सभी विज्ञानों को एक सामान्य पटल पर ले आता है।
- इस तरह सामाजिक जीवन को जटिलताओं का अध्ययन व विश्लेषण आसानी से किया जा सकता है।
- समाजशास्त्र और इतिहास में संबंध:- संस्कृति और संस्थाओं का इतिहास समाजशास्त्र को समझने एवं उसकी सामग्री जुटाने में मदद करता है। वास्तव में समाजशास्त्र ऐतिहासिक निष्कर्षों के आधार पर ही सामाजिक जीवन को समझने का प्रयत्न करता है।
- इतिहास एक विशिष्ट विज्ञान है, जो घटनाओं की व्याख्या करता हैं। ऐतिहासिक तथ्यों के द्वारा, इसका केंद्रबिंदु ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन है। त
- समाजशास्त्र सामाजिक समस्याओं का विश्लेषण करता है तथा इसका समाधान (निदान) प्रस्तुत करता है, जबकि इतिहास केवल तथ्यों का विवरण प्रस्तुत करता है।
- समाजशास्त्र एक विश्लेषणात्मक विधा हैं, जबकि इतिहास एक वर्णनात्मक विधा हैं।
- समाजशास्त्र का संबंध वर्तमान एवं कुछ सीमा तक भविष्य से हैं, यधपि इतिहास केवल अतीत का विश्लेषण करता है। समाजशास्त्र विविध घटनाओं में निहित समानता की व्याख्या करता है, यधपि इतिहास का केंद्रबिंदु समान घटनाओं में निहित भिन्नता हैं।
- समाजशास्त्र और राजनीतिशास्त्र में संबंध-
- समाजशास्त्र एवं राजनीति विज्ञान एक-दूसरे से संबंधित है। इसकी वजह यह है कि दोनों सामाजिक विज्ञान है, लेकिन दोनों के कार्यक्षेत्र पृथक हैं।
- समाज पर राज्य के कानूनों का बहुत नियंत्रण रहता है। कानून के द्वारा राज्य समाज को परिवर्तनशील रखता है, एवं इसके साथ ही उसमें सुधार लाता है, लेकिन परंतु कानून बनाते समय देश के रीति-रिवाजों, प्रथाओं, परंपराओं आदि का ध्यान रखना पड़ता है। इसके लिए समाजशास्त्रिय ज्ञान की आवश्यकता है।
- समाजशास्त्र को राजनीति विज्ञान का विस्तृत स्वरूप या आकार समझा जाता है।
- राजनीतिक विज्ञान का केंद्रबिंदु मानव संगठन (समूह) का कोई एक आकार है। उदाहरण के लिए राज्य, लेकिन समाजशास्त्र मानव समूह के सभी रूपों या आकृतियों की व्याख्या करता है।राजनीति विज्ञान मानव प्राणियों के साथ किसी
- राजनीतिक परिदृश्य में व्यवहार करता है, जबकि समाजशास्त्र व्यक्तियों के परिवर्तन को राजनीतिक प्राणी के रूप में व्याख्या करता है।
- समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है, जबकि राजनीति विज्ञान एक विशिष्ट विज्ञान, जो मानव जीवन के राजनीतिक दृष्टिकोण की व्याख्या करता है।
- समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान के संबंध में बारनेस (Barnes) ने लिखा है, "समाजशास्त्र और आधुनिक राजनीतिक सिद्धान्त के विषय में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि राज्य सिद्धान्त में पिछले पचास वर्षों में जो परिवर्तन हुए हैं, उनमें अधिकतर समाजशास्त्र द्वारा सुझाए गए और बतलाए हुए मार्ग के अनुसार हुए हैं।"
- समाजशास्त्र एवं मनोविज्ञान में संबंध-
मनोविज्ञान को प्रायः व्यवहार के विज्ञान के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह मुख्यतः व्यक्ति से संबंधित है। सामजिक मनोविज्ञान जो समाजशास्त्र तथा मनोविज्ञान के मध्य एक पुल का काम करता है, अपनी प्राथमिक रुचि एक व्यक्ति में रखता है लेकिन उसका इस बात से संबंध रहता है कि व्यक्ति किस संबंध सामाजिक रहता है कि व्यक्ति किस तरह सामाजिक समूहों में सामूहिक तौर पर अन्य व्यक्तियों के साथ व्यवहार करता है। - समाजशास्त्र और सामाजिक मनोविज्ञान (Social Psychology) में सकारात्मक (Positive) संपर्क है।
- समाजशास्त्र समाज का अध्ययन करता हैं,यधपि मनोविज्ञान व्यक्तियों का अध्ययन करता है।
- समाजशास्त्र का केंद्रबिंदु 'मानवों का समूह' है, जबकि मनोविज्ञान व्यक्तियों का अध्ययन करता है।
- समाजशास्त्र सामाजिक विधियों की व्याख्या करता है, जबकि मनोविज्ञान मानसिक क्रियाओं का अध्ययन है; जैसे- याददाश्त (Memory), ध्यान (Attention), सीखना (Learn up) आदि।
- समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में संबंध-
- आधुनिक समय में विभिन्न समाजशास्त्रिय अध्ययन आर्थिक समस्याओं को सुलझाने के लिए लगे हैं। इसके अलावा जनसंख्या, आर्थिक नियोजन, निर्धनता, बेकारी, आदि समस्याओं का अण्ययन समाजशास्त्र में सामान्य रूप से किया जाता है। इस तरह दोनों ही विज्ञानों को एक-दूसरे से पर्याप्त मदद लेनी पड़ती है।
- समाजशास्त्र समग्र समाज का वैदिक अध्ययन है, जबकि अर्थशास्त्र समाज के केवल आर्थिक भाग का अध्ययन करता है।
- समाजशास्त्र एक व्यापक विज्ञान है, क्योंकि इसका केंद्रबिंदु सभी प्रकार के दृष्टिकोण हैं, जबकि अर्थशास्त्र मुख्य रूप से आर्थिक दृष्टिकोण की व्याख्या करता है।
- व्यक्तियों की व्याख्या के लिए समाजशास्त्रीय उपागम जन-सामूहिक है, जबकि अर्थशास्त्र का उपागम व्यक्ति-विशिष्ट हैं।
- सामान्यतः समाजशास्त्र का सरोकार सामाजिक संबंधों से है, जबकि विशिष्ट विज्ञान के रूप में अर्थशास्त्र का केंद्रबिंदु केवल आर्थिक क्रियाकलाप हैं।
- तुलनात्मक अध्ययन
क्र. सं. समाजशास्त्र अर्थशास्त्र इतिहास राजनीतिशास्त्र मनोविज्ञान 1. यह सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन करता है। यह वर्तमान तथा तत्काल बीते हुए समय अध्ययन करता है। यह केवल आर्थिक गतिवधियों का अध्ययन करता है। बीते हुए समय का अध्ययन करता है। यह केवल राज्य के राजनैतिक सिद्धांत तथा सरकारी प्रशासन का अध्ययन करता है। यह व्यक्ति की मनोदशा का अध्ययन करता है। 2. इसका विषय क्षेत्र विशाल है। इसका विषय क्षेत्र सीमित है। इसक विषय क्षेत्र सीमित है। इसका विषय क्षेत्र सीमित है। इसका विषय क्षेत्र सीमित है। 3. इसके अध्ययन के लिए तुलनात्मक तथा सोशोमैटरी विधि प्रयोग की जाती है। इसके अध्ययन में आगमन तथा निगमन विधि प्रयोग की जाती है। इसके अध्ययन में विवरणात्मक विधि का प्रयोग होता है। इसके अध्ययन में तुलनात्मक विधि का प्रयोग होता है। इसके अध्ययन में गुणात्मक विधि का प्रयोग किया जाता है। 4. समाजशास्त्र घटनाओं के घटित होने के कारणों को खोजने की कोशिश करता है। दृष्टिकोण आर्थिक है तथा इसका सम्बन्ध व्यक्ति की भौतिक ख़ुशी से है। पुरानी इतिहास घटनाओं को जानकारी देता है। तथा उसके विकास के अलग-अलग चरणों का अध्ययन करता है। यह एक विशेष शास्त्र है। यह केवल व्यक्ति के जीवन के राजनीतिक हिस्से का अध्ययन करता है। मनौवैज्ञानिक व्यक्तिगत आशाओं और भय का अध्ययन करते हैं।