पुष्यभूति वंश

 

पुष्यभूति वंश

पुष्यभूति वंश

पूष्यभूति वंश के बारे में जानकारी का स्रोत हैं. बाणभट्ट का हर्षचरितए बांस खेड़ा (628 ई) एवं मधुबन (631 ई) ताम्रपत्रा अभिलेखए नालंदा एवं सोनीपत ताम्रपत्रा अभिलेखए ह्वेनसांग एवं इतिसंग के यात्रा वृतांत। श्हर्षचरित इस ग्रन्थ का लेखक बाणभट्ट हर्षवर्धन का दरबारी कवि था। ऐतिहासिक विषय पर महाकाव्य लिखने का यह प्रथम सफल प्रयास था। इसके पांचवेंए छठे अध्याय में हर्ष का वर्णन है।

हर्षवर्धन (606.647 ई)

वर्धन वंश या पुष्यभूति वंश के संस्थापक पुष्यभूति थे। स्वतंत्र शासक प्रभाकर वर्धन हुए इन्होंने महाराजाधिराज, परम भटनागर और प्रताप सिंह जैसी उपाधि धारण किया। इनके दो पुत्र थे – राज्यवर्धन तथा हर्षवर्धन और पुत्री राज्यश्री थी। राज्यश्री का विवाह ग्रहवर्मा से हुआ हुआ। प्रभाकर के समय हूण का आक्रमण हुआ। राज्यवर्धन के साथ मिलकर युद्ध में सफलता प्राप्त किया। इसी समय मालवा के शासक देवगुप्त ने ग्रहवर्मा की हत्या कर दिया और राज्यश्री को किला में बंद कर दिया। बड़ा भाई राज्यवर्धन ने देवगुप्त का वध कर दिया और लौटते समय देवगुप्त के मित्र शशांक ने छल से राज्यवर्धन का वध कर डाला। विषम परिस्थिति में छोटा भाई हर्षवर्धन 16 वर्ष की आयु में 606 में थानेश्वर (कुरुक्षेत्र के निकट) की गद्दी पर बैठा और 606 में ही एक संवत संवत चलाया जो हर्ष संवत के नाम से विख्यात है।

पूर्वी बंगाल पर भास्कर वर्मन और पश्चिम बंगाल पर हर्षवर्धन का आधिपत्य कायम हुआ। इसके पश्चिम की ओर ध्यान दिया क्योंकि गुजरात स्थित वल्लभी के शासक ध्रुवसेन या ध्रुवभट्ट आक्रमक स्थिति को अपनाएं हुए था। हर्षवर्धन विषम परिस्थिति पाकर ध्रुवभट्ट के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किया। अपनी पुत्री की शादी करके पश्चिम भारत से निजात पाया।

हर्षवर्धन ने एक बौद्ध दिवाकरमित्रा के सहायता से अपनी बहन राजश्री को बचाया तथा कन्नौज का शासनभार अपने ऊपर ले लिया। हर्ष ने कन्नौज को राजधानी बनाया और पांच राज्यों.पंजाबए कन्नौजए गौड़ (बंगाल) मिथिला तथा उड़ीसा पर आधिपत्य स्थापित किया। लगभग 620 ई)् में हर्ष का दक्षिण के शासक पुलकेशिन द्वितीय के साथ नर्मदा के तट पर युद्ध हुआ। इसके बाद हर्ष उत्तर भारत तक ही सिमट कर रह गया।

शासन व्यवस्था

हर्ष ने दिन को भागों में बांट दिया था। एक भाग में प्रशासनिकए एक भाग में धार्मिक तथा अन्य में व्यकितक कार्य करता था। राजा की सहायता के लिए मंत्रिपरिषद होती थी। मंत्री को सचिव या आमात्य कहा जाता था। अधिनस्थ शासक महाजन अथवा महासामंत कहे जाते थे। संदेशवाहक दिर्घध्वज तथा गुप्तचर सर्वगतरू कहे जाते थे।

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