नागर शैली उत्तर भारतीय हिन्दू स्थापत्य कला की तीन में से एक शैली है। इस
शैली का प्रसार हिमालय से लेकर विंध्य पर्वत माला तक देखा जा सकता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार नागर शैली के मंदिरों की पहचान आधार से लेकर सर्वोच्च अंश तक इसका चतुष्कोण होना है। विकसित नागर मंदिर में गर्भगृह, उसके समक्ष क्रमशः अन्तराल, मण्डप तथा अर्द्धमण्डप प्राप्त होते हैं। एक ही अक्ष पर एक दूसरे से संलग्न इन भागों का निर्माण किया जाता है।
'नागर' शब्द नगर से बना है। सर्वप्रथम नगर में निर्माण होने के कारण इन्हे नागर की संज्ञा प्रदान की गई। शिल्पशास्त्र के अनुसार नागर मंदिरों के आठ प्रमुख अंग है
- (१) मूल आधार - जिस पर सम्पूर्ण भवन खड़ा किया जाता है।
- (२) मसूरक - नींव और दीवारों के बीच का भाग
- (३) जंघा - दीवारें (विशेषकर गर्भगृह की दीवारें)
- (४) कपोत - कार्निस
- (५) शिखर - मंदिर का शीर्ष भाग अथवा गर्भगृह का उपरी भाग
- (६) ग्रीवा - शिखर का ऊपरी भाग
- (७) वर्तुलाकार आमलक - शिखर के शीर्ष पर कलश के नीचे का भाग
- (८) कलश - शिखर का शीर्षभाग
नागर शैली का क्षेत्र उत्तर भारत में नर्मदा नदी के उत्तरी क्षेत्र तक है। परंतु यह कहीं-कहीं अपनी सीमाओं से आगे भी विस्तारित हो गयी है। नागर शैली के मंदिरों में योजना तथा ऊॅंचाई को मापदंड रखा गया है। नागर वास्तुकला में वर्गाकार योजना के आरंभ होते ही दोनों कोनों पर कुछ उभरा हुआ भाग प्रकट हो जाता है जिसे 'अस्त' कहते हैं। इसमें चांड़ी समतल छत से उठती हुई शिखा की प्रधानता पाई जाती है। यह शिखा कला उत्तर भारत में सातवीं शताब्दी के पश्चात् विकसित हुई अर्थात परमार शासकों ने वास्तुकला के क्षेत्र में नागर शैली को प्रधानता देते हुए इस क्षेत्र में नागर शैली के मंदिर बनवाये।
इस शैली के मंदिर मुख्यतः मध्य भारत में पाए जाते है जैसे -
- कंदरिया महादेव मंदिर (खजुराहो)
- लिंगराज मंदिर - भुवनेश्वर (ओड़िसा )
- जगन्नाथ मंदिर - पुरी (ओड़िसा )
- कोणार्क का सूर्य मंदिर - कोणार्क (ओड़िसा )
- मुक्तेश्वर मंदिर - (ओड़िसा )
- खजुराहो के मंदिर - मध्य प्रदेश
- दिलवाडा के मंदिर - आबू पर्वत (राजस्थान )
- सोमनाथ मंदिर - सोमनाथ (गुजरात)