1773 ई. के रेग्युलेटिंग एक्ट की कमियों को दूर करने और कंपनी के भारतीय क्षेत्रों के प्रशासन को अधिक सक्षम और उत्तरदायित्वपूर्ण बनाने के लिये अगले एक दशक के दौरान जाँच के कई दौर चले और ब्रिटिश संसद द्वारा अनेक कदम उठाये गए|
इनमें सबसे महत्पूर्ण कदम 1784 ई. में पिट्स इंडिया एक्ट को पारित किया जाना था,जिसका नाम ब्रिटेन के तत्कालीन युवा प्रधानमंत्री विलियम पिट के नाम पर रखा गया था| इस अधिनियम द्वारा ब्रिटेन में बोर्ड ऑफ़ कण्ट्रोल की स्थापना की गयी जिसके माध्यम से ब्रिटिश सरकार भारत में कंपनी के नागरिक,सैन्य और राजस्व सम्बन्धी कार्यों पर पूर्ण नियंत्रण रखती थी|
अभी भी भारत के साथ व्यापार पर कंपनी का एकाधिकार बना रहा और उसे कंपनी के अधिकारीयों को नियुक्त करने या हटाने का अधिकार प्राप्त था |अतः ब्रिटिश भारत पर ब्रिटिश सरकार और कंपनी दोनों के शासन अर्थात द्वैध शासन की स्थापना की गयी|
गवर्नर जनरल को महत्वपूर्ण मुद्दों पर परिषद् के निर्णय को न मानने की शक्ति प्रदान की गयी| मद्रास व बम्बई प्रेसीड़ेंसी को उसके अधीन कर दिया गया और उसे भारत में ब्रिटिश सेना,कंपनी और ब्रिटिश सरकार दोनों की सेना,का सेनापति बना दिया गया |
1784 ई. के एक्ट द्वारा स्थापित सिद्धांतों ने भारत में ब्रिटिश प्रशासन का आधार तैयार किया | सेना,पुलिस,नागरिक सेवा और न्यायालय वे प्रमुख एजेंसियां/निकाय थी जिनके माध्यम से गवर्नर जनरल शक्तियों का प्रयोग और उत्तरदायित्वों का निर्वाह करता था| कंपनी की सेना में एक बड़ा भाग भारतीय सैनिकों का भी था जिसका आकार ब्रिटिश क्षेत्र के विस्तार के साथ बढता गया और एक समय इन सिपाहियों की संख्या लगभग 200,000 हो गयी थी| इन्हें नियमित रूप से वेतन प्रदान किया जाता था और अत्याधुनिक हथियारों के प्रयोग हेतु प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाता था| भारतीय शासकों के यहाँ नौकरी करने वाले सैनिकों को प्रायः ये सुविधाएँ प्राप्त नहीं थीं| आगे चलकर एक के बाद एक सफलता प्राप्त करने के कारण कंपनी की सेना के सम्मान में वृद्धि होती गयी जिसने नए रंगरूटों को इसकी ओर आकर्षित किया| लेकिन सेना के सभी अफसर यूरोपीय थे| भारत में कंपनी की सेना के अतिरिक्त ब्रिटिश सैनिकों की भी उपस्थिति थी|
हालाँकि कंपनी की सेना में नियुक्त भारतीय सैनिकों ने अत्यधिक सक्षम होने की ख्याति अर्जित की थी ,लेकिन वे औपनिवेशिक शक्ति के भाड़े के सैनिक मात्र थे क्योकि न तो उनमे वह गर्व की भावना थी जो किसी भी राष्ट्रीय सेना के सैनिक को उत्साह प्रदान करती है और न ही पदोन्नति के बहुत अधिक अवसर उन्हें प्राप्त थे| इन्हीं कारकों ने कई बार उन्हें विद्रोह करने के लिए उकसाया जिनमें सबसे महान विद्रोह 1857 का विद्रोह था|
पिट्स इंडिया एक्ट में एक प्रावधान विजयों की नीति पर रोक लगाने से भी सम्बंधित था लेकिन उस प्रावधान को नज़रअंदाज़ कर दिया गया क्योंकि ब्रिटेन के आर्थिक हितों ,जैसे ब्रिटेन की फैक्ट्रियों से निकलने वाले तैयार माल के लिए बाज़ार बनाने और कच्चे माल के नए स्रोतों की खोज करने, के लिए नए क्षेत्रों पर विजय प्राप्त करना जरूरी था| साथ ही इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए नए विजित क्षेत्रों पर जल्द से जल्द कानून-व्यवस्था की स्थापना करना भी आवश्यक था| अतः एक नियमित पुलिस बल की व्यवस्था की गयी ताकि कानून एवं व्यवस्था को बनाये रखा जाये|
कार्नवालिस के समय में इस बल को एक नियमित रूप प्रदान किया गया |1791 ई. में कलकत्ता के लिए पुलिस अधीक्षक की नियुक्ति की गयी और जल्दी ही अन्य शहरों में भी कोतवालों की नियुक्त किया गया |जिलों को थानों में विभाजित किया गया और प्रत्येक थाने का प्रभार एक दरोगा को सौंपा गया|गावों के वंशानुगत पुलिस कर्मचारियों को चौकीदार बना दिया गया | बाद में जिला पुलिस अधीक्षक का पद सृजित किया गया |
हालाँकि पुलिस ने कानून एवं व्यवस्था की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई लेकिन वह कभी भी लोकप्रिय नहीं बन पाई बल्कि उसने भ्रष्टाचार और सामान्य जनता को तंग करने की प्रवृत्ति के कारण बदनामी ही अर्जित की |अतः यह पूरे देश में सरकारी प्राधिकार का प्रतीक बन गयी| इसके निचले दर्जे के सिपाही को बहुत ही कम वेतन दिया जाता था सेना की ही तरह यहाँ भी उच्च पदों पर केवल यूरोपीय व्यक्ति को नियुक्त किया जाता था|
निष्कर्ष
यह एक्ट इस दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है कि इसने कंपनी की गतिविधियों और प्रशासन के सम्बन्ध में ब्रिटिश सरकार को सर्वोच्च नियंत्रण शक्ति प्रदान कर दी | यह पहला अवसर था जब कंपनी के अधीन क्षेत्रों को ब्रिटेन के अधीन क्षेत्र कहा गया|