1861 का अधिनियम
🖍1861 का अधिनियम🖍
भारतीय परिषद् अधिनियम-1861 का निर्माण देश के प्रशासन में भारतीयों को शामिल करने के उद्देश्य से बनाया गया था|इस अधिनियम ने सरकार की शक्तियों और कार्यकारी व विधायी उद्देश्य हेतु गवर्नर जनरल की परिषद् की संरचना में बदलाव किया| यह प्रथम अवसर था जब गवर्नर जनरल की परिषद् के सदस्यों को अलग-अलग विभाग सौंपकर विभागीय प्रणाली की शुरुआत की| इस अधिनियम के अनुसार बम्बई व मद्रास की परिषदों को अपने लिए कानून व उसमें संशोधन करने की शक्ति पुनः प्रदान की गयी जब कि अन्य प्रान्तों में अर्थात बंगाल में 1862 में,उत्तर-पश्चिमी सीमान्त प्रान्त में 1886 में और बर्मा व पंजाब में 1897 में इन परिषदों की स्थापना की गयी|
🖍अधिनियम के मुख्य बिंदु🖍
• तीन अलग-अलग प्रेसीडेंसियों(बम्बई,मद्रास और बंगाल) को एक सामान्य प्रणाली के तहत लाया गया|
• इस अधिनियम द्वारा विधान परिषदों की स्थापना की गयी|
• इस अधिनियम द्वारा वायसराय की परिषद् में विधिवेत्ता के रूप में एक पांचवें सदस्य को शामिल किया गया|
• वायसराय की परिषदों का विस्तार किया गया और कानून निर्माण के उद्देश्य से अतिरिक्त सदस्यों की संख्या न्यूनतम 6 और अधिकतम 12 तक कर दी गयी| ये सदस्य गवर्नर जनरल द्वारा नामित किये जाते थे और इनका कार्यकाल दो साल था|अतः कुल सदस्य संख्या बढ़कर 17 हो गयी|
• इन नामांकित सदस्यों के कम से कम आधे सदस्य गैर-सरकारी होना जरुरी था|
• इस अधिनियम के अनुसार बम्बई व मद्रास की परिषदों को अपने लिए कानून व उसमें संशोधन करने की शक्ति पुनः प्रदान की गयी जब कि अन्य प्रान्तों में अर्थात बंगाल में 1862 में,उत्तर-पश्चिमी सीमान्त प्रान्त में 1886 में और बर्मा व पंजाब में 1897 में इन परिषदों की स्थापना की गयी|
• कैनिंग ने 1859 ई. में विभागीय प्रणाली की शुरुआत की जिसके तहत गवर्नर जनरल की परिषद् के सदस्यों को अलग-अलग विभाग सौंपे गए | कोई भी सदस्य अपने विभाग से सम्बंधित मामलों में अंतिम और निर्णायक आदेश जारी कर सकता था|
• लॉर्ड कैनिंग ने 1862 ई. में तीन भारतीय सदस्यों को अपनी परिषद् में शामिल किया जिनमें बनारस के राजा,पटियाला के राजा और सर दिनकर राव शामिल थे|
🖍निष्कर्ष🖍
भारतीय परिषद् अधिनियम-1861 भारतीयों को प्रशासन में भागीदारी प्रदान कर और भारत में कानून निर्माण की त्रुटिपूर्ण प्रक्रिया को सुधार कर भारतीय आकांक्षाओं की पूर्ति की |अतः इस अधिनियम द्वारा भारत में प्रशासनिक प्रणाली की स्थापना की गयी जोकि भारत में ब्रिटिश शासन के अंत तक जारी रही|