जाट का इतिहास

जाट का इतिहास
जाट का इतिहास 


जाट
मुग़ल शासक औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह करने के बाद 17 वीं सदी में शक्तिशाली भरतपुर राज्य की स्थापना के साथ जाट राज्य अस्तित्व में आया। विद्रोही मुख्यतः हरियाणा,पंजाब और गंगा दोआब के पश्चिमी भाग के ग्रामीण इलाकों में केन्द्रित थे और पूर्वी क्षेत्र में अनेक छोटे छोटे राज्य मिलते थे। ये प्राचीन व मध्यकालीन कृषक के साथ साथ महान योद्धा भी थे जिन्हें हिन्दू और मुस्लिम शासकों द्वारा सैनिक के रूप भर्ती किया गया था।

आगरा क्षेत्र के कुछ महत्वाकांक्षी जाट ज़मींदारों का मुग़ल,राजपूत और अफगानों के साथ संघर्ष भी हुआ क्योकि वे जाट जमींदार एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना करना चाहते थे। सूरजमल एकमात्र जाट नेता था, जिसने बिखरे हुए जाटों को एक शक्तिशाली राज्य के रूप में संगठित किया। कुछ प्रमुख जाट नेताओं का विवरण निम्नलिखित है-

गोकला: 
वह तिलपत का जमींदार था जिसने 1669 ई.में जाट विद्रोह का नेतृत्व किया था।लेकिन मुग़ल गवर्नर हसन अली द्वारा विद्रोह को दबा दिया गया और गोकला की मृत्यु हो गयी।

राजाराम: 
वह सिंसना का जमींदार था जिसने 1685 ई.में जाट विद्रोह का नेतृत्व किया।अमर के रजा बिशन सिंह कछवाहा द्वारा इस विद्रोह को दबा दिया गया।

चुडामन: 
वह राजाराम का भतीजा था जिसने 1704 ई.में मुगलों को हराकर सिंसनी पर कब्ज़ा कर लिया। इसने भरतपुर राज्य की स्थापना की और बहादुर शाह ने इसे मनसब प्रदान किया था। इसने बंदा बहादुर के विरुद्ध मुग़ल अभियान में मुगलों का साथ दिया था।

बदन सिंह: 
वह चुडामन का भतीजा था जिसे अहमद शाह अब्दाली ने राजा की उपाधि प्रदान की थी। उसे जाट राज्य भरतपुर का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
सूरजमल: वह बदनसिंह द्वारा गोद लिया गया पुत्र था ।उसे जाट शक्ति का प्लेटो और जाट अफलातून भी कहा जाता है क्योंकि उसने जाट राज्य को चरमोत्कर्ष पर पहुँचाया था। उसने दिल्ली,आगरा और मेवाड के क्षेत्रों में जाट अभियानों का नेतृत्व किया और पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों की सहायता करने के लिए भी सहमत हुआ। पठानों द्वारा दिल्ली के पास उसकी हत्या कर दी गयी।

निष्कर्ष

17 वीं सदी में मुगलों के विघटन के कारण जाटों के रूप में एक नयी लड़ाकू जाति का उदय हुआ,जिन्होंने स्वयं को मध्य एशिया से भारत में प्रवेश करने वाले इंडो-सीथियन का वंशज घोषित किया। हालाँकि उन्होंने राज्य का गठन तो किया लेकिन उनकी आतंरिक संरचना जनजातीय संघ जैसी ही बनी रही।
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