लॉर्ड लिनलिथगो के स्थान पर अक्टूबर, 1943 में लॉर्ड वेबेल को गवर्नर जनरल के रूप में नियुक्त किया गया|लॉर्ड वेबेल ने उस समय के भारत में उपस्थित गतिरोध को दूर करने के लिए प्रयास किया| वे मार्च 1945 में विचार विमर्श के लिए इंग्लैंड गए| उन्होंने 14 जून को भारतीय राजनीतिक गतिरोध को दूर करने के लिए ब्रिटिश सरकार के एक प्रस्ताव, जिसे वेबेल योजना कहा गया,को भारतीय जनता के लिए जारी किया|
वेबेल योजना के प्रावधान
- केंद्र में नई कार्यकारी परिषद् का गठन करना,जिसमे वायसराय और कमांडर इन चीफ को छोड़कर अन्य सभी सदस्य भारतीय होंगें
- रक्षा को छोड़कर अन्य सभी विभाग भारतीय सदस्यों के नियंत्रण में रहेंगे
- प्रस्तावित कार्यकारी परिषद्, जिसमे 14 सदस्य शामिल होने थे, में मुस्लिमों,जोकि देश की कुल जनसंख्या के 25% ही थे, को उनके जनसंख्या अनुपात से अधिक अर्थात 6 सदस्यों को चुनने का अधिकार दिया गया|
- कांग्रेस ने मांग की कि उसे कांग्रेस द्वारा परिषद् में नामित सदस्यों का चुनाव मुस्लिमों सहित किसी भी समुदाय के प्रतिनिधियों से करने का अधिकार प्रदान किया जाये|
शिमला सम्मलेन
• लॉर्ड वेबेल ने वेबेल योजना के प्रावधानों पर विचार करने के लिए ब्रिटिश भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला में 21 भारतीय नेताओं का एक सम्मलेन आयोजित किया|
• वेबेल योजना ऐसे भारतीय स्व-शासन पर सहमति बनाने के लिए आई थी जिसमे मुस्लिमों के लिए पृथक प्रतिनिधित्व और दोनों समुदायों को उनके बहुमत वाले क्षेत्रों में बहुमत की शक्तियों को घटा दिया गया|
• वार्ता मुस्लिम प्रतिनिधियों के चयन के मुद्दे को लेकर अटक गयी| जिन्ना ने कहा कि कोई भी गैर-लीग मुस्लिम कार्यकारी परिषद् में शामिल नहीं होगा क्योकि भारतीय मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार सिर्फ मुस्लिम लीग को है, जबकि कांग्रेस का मानना था कि उसे मुस्लिमों सहित किसी भी संप्रदाय के लोगों को कार्यकारी परिषद् में शामिल करने का अधिकार है|
• वेबेल ने कार्यकारी परिषद् के कुल 14 स्थानों में से 6 स्थान मुस्लिमों को प्रदान किये और ब्रिटिशों ने उन्हें किसी भी ऐसे संवैधानिक प्रस्ताव, जो उनके हित में न हो, के सन्दर्भ में वीटो शक्ति प्रदान की| मुस्लिमों की जनसंख्या भारत की कुल जनसंख्या की 25% थी| अतः इन अतार्किक मांगों का कांग्रेस ने विरोध किया| मुस्लिम लीग भी झुकने को तैयार नहीं थी और वेबेल योजना समाप्त हो गयी|
निष्कर्ष
वेबेल योजना उस समय भारत में उपस्थित राजनीतिक गतिरोध को दूर करने के लिए तैयार किया गया था लेकिन मुस्लिम लीग और कांग्रेस के नेताओं के बीच समझौता न हो पाने के कारण उन्होंने प्रस्ताव का बहिष्कार कर दिया और अंततः शिमला सम्मलेन में प्रस्ताव समाप्त हो गया|