शिवाजी ने 1645-47 ई. के मध्य जिन तीन किलों पर अधिकार किया वे पहाड़ी दुर्ग थे. कुछ समय बाद (1656 ई. में) उन्होंने जावली (Jawali) पर विजय की. यह विजय शिवाजी के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण विजय थी. इस विजय के बाद -
अब उनके लिए अपने राज्य को दक्षिण-पश्चिम में फैलाना आसान हो गया.
यहाँ से प्राप्त सैनिक (मालवी सैनिक) उसके सबसे पहले सच्चे साथी और सबसे बड़े स्वामिभक्त सैनिक निकले.
शिवाजी को मोरों के वंश द्वारा एकत्र धन और खजाना प्राप्त हुआ जिससे शिवाजी ने अपनी वित्तीय और सैनिक समस्याओं को हल कर लिया.
शिवाजी ने मालव प्रदेश पर अधिकार कर लिया.
उसके बाद उन्होंने रायगढ़ में एक शक्तिशाली दुर्ग बनवाया और पुरंदर के किले जीत लिए और नए किले बनवाये. ये किले बीजापुर राज्य में पड़ते थे.
Shivaji List of Conquests
बीजापुर से संघर्ष
शिवाजी की गतिविधियों से क्रुद्ध होकर बीजापुर के शासक आदिलशाह ने शिवाजी के पिता शाहजी भोंसले को कैद कर लिया. ऐसी विकट परिस्थिति में शिवाजी ने मुग़ल सम्राट शाहजहाँ को औरंगजेब के माध्यम से (औरंगजेब उस समय दक्षिण सूबे का सूबेदार था) प्रार्थना की और उसके सहयोग से अपने पिता को कैद से मुक्त करा लिया. इसके 6 वर्ष बाद तक शिवाजी ने अपनी सैनिक गतिविधियों को बंद रखा.
अफजल खां का वध
मुग़लों के साथ संघर्ष
अफजल खां को पराजित करने के बाद शिवाजी ने बड़े जोश से मुग़ल प्रदेशों में छापे मारने प्रारम्भ कर दिए. औरंगजेब ने 1663 ई. में मुग़ल सेनापति शाइस्ता खां को शिवाजी के विरुद्ध भेजा. प्रारम्भ में उसने अनेक प्रदेश जीत लिए. इसके बाद शाइस्ता खां वर्षा ऋतु गुजारने के लिए पूना में ठहर गया. जब वह पूना में ठहरा हुआ था तो शिवाजी ने उसपर अचानक धावा बोल दिया. शिवाजी ने 15 अप्रैल, 1663 ई. की रात को अपने 400 चुने हुए सहयोगियों के साथ एक बारात के रूप में पूना में प्रवेश किया. उन्होंने शाइस्ता खां को छावनी के भीतर ही घायल कर दिया और उसके बेटे को मौत के घाट उतार दिया. मुग़ल सेना में भगदड़ मच गई. शाइस्ता खां की इस पराजय से मुग़ल दरबार में सनसनी फैल गई.
सूरत की लूट
शिवाजी ने पूना की विजय के बाद 4,000 सैनिकों के साथ मुगलों के अधीनस्थ सूरत शहर पर जोरदार हमला कर दिया. 16 से 20 जनवरी (1664 ई.) तक इस शहर को लूटा गया. शिवाजी की सेना ने करीब एक करोड़ रुपये का माल लूटा.
शिवाजी के विरुद्ध शहजादा मुअज्जम और राजा जयसिंह
औरंगजेब ने शिवाजी को मुँहतोड़ जवाब देने के लिए 1665 ई. में जयसिंह और मुअज्जम के अधीन एक विशाल सेना भेजी. इस बार की लड़ाई में मराठों के सेनापति मुरार नाडेय मारा गया. विवश होकर शिवाजी ने पुरंदर की संधि (22 जून, 1665 ई.) द्वारा शांति स्थापित की. जिसके अनुसार :-
क) शिवाजी अपने अधिकृत 35 किलों में 23 किले मुगलों को सौंप देंगे और 12 किले अपने पास रखेंगे. इन 23 किलों की आय लगान के रूप में प्रतिवर्ष 4 लाख हून थी. शिवाजी के पास जो 12 किले बचे थे, उनसे प्रतिवर्ष 1 लाख हून आय प्राप्त होती थी.
ख) शिवाजी ने 40 लाख हून 13 किश्तों में चुकाने का वादा किया. यह रकम कोंकण और बालाघाट के किलों से प्राप्त होने वाली आमदनी का एक प्रकार से अंश ही था. इन किलों पर शिवाजी के अधिकार को मान्यता दे दी थी.
ग) शिवाजी ने मुग़ल दरबार में व्यक्तिगत रूप से सेवा करने से छूट माँगी. उसके स्थान पर उसके छोटे पुत्र संभाजी को मुग़ल दरबार में 5,000 का मंसब दिया गया.
घ) शिवाजी ने मुग़ल सम्राट के प्रति निष्ठा का वचन दिया और मुगलों को दक्खन में सैनिक सहायता देने का वायदा किया. पुरंदर की सन्धि को इतिहासकार राजा जयसिंह की बड़ी विजय मानते हैं क्योंकि जयसिंह ने इस संधि के द्वारा मुगलों के लिए 23 किले और एक बहुत बड़ी रकम प्राप्त की. साथ ही साथ वह शिवाजी से यह बात मनवाने में भी सफल हुआ कि शिवाजी मुग़ल सम्राट को मिलने व्यक्तिगत रूप से मुग़ल दरबार में जायेंगे.
शिवाजी मुग़ल दरबार में बंदी और उनका वहाँ से बच निकलना
12 मई, 1666 ई. को शिवाजी अपने वायदे के अनुसार आगरा के मुग़ल दरबार में अपने पुत्र संभाजी और 350 सैनिकों के साथ उपस्थित हुआ. शिवाजी को औरंगजेब से उचित सम्मान न मिलने के चलते वे दरबार में ही क्रोधित हो उठे और मुग़ल सम्राट ने उन्हें बंदी बना लिया. परन्तु शिवाजी बड़ी चालाकी से एक टोकरे में बैठकर वहाँ से बच निकलने में सफल हो गए.
सूरत पर पुनः आक्रमण और राज्यारोहण
दक्षिण पहुँचकर शिवाजी ने अपने पुराने किले को पुनः जीत लिया. इस बार औरंगजेब ने जसवंतसिंह और शाहजादा मुअज्जम को भेजा. शिवाजी ने उन्हें पराजित किया और मुगलों से संधि कर ली. इस संधि के फलस्वरूप शीघ्र ही औरंगजेब ने शिवाजी को 'राजा” की उपाधि प्रदान की. शिवाजी को बरार की जागीर भी दे दी गई. परन्तु शिवाजी ने संधि का पालन नहीं किया और सूरत पर पुनः आक्रमण कर दिया. सूरत की दूसरी लूट में भी मराठों को बहुत-सा सोना मिला. दक्षिण में मराठों का इतना आतंक बढ़ गया कि वे मुगल प्रदेशों से चौथ और सरदेशमुखी नामक कर भी वसूल करने लगे. शिवाजी ने केवल लूटमार करके ही स्वयं को संतुष्ट नहीं किया. उनके सामने और भी महान् उद्देश्य थे. उन्होंने 15 जून, 1674 ई. में शाहूजी की मृत्यु के बाद 'छत्रपति महाराज” की उपाधि धारण की.
राज्यारोहण के बाद विजयें और मृत्यु
अपने राज्यारोहण के बाद शिवाजी केवल 6 वर्ष तक ही जीवित रह पाए. इस अवधि में उन्होंने सबसे पहले खानदेश (1675 ई.) आक्रमण किया और 1677 ई. में कर्नाटक पर चढ़ाई करके उसका अधिकांश भाग जीत लिया. शिवाजी ने अपनी मृत्यु से पहले बीजापुर के सुल्तान को मुगलों के विरुद्ध सैनिक सहयोग दिया.