स्थायी बंदोबस्त क्या है? |
लॉर्ड कार्नवालिस का शासनकाल अपने प्रशानिक सुधारों के लिए हमेशा याद किया जायेगा. उसने साम्राज्य विस्तार की और अधिक ध्यान न देकर आंतरिक सुधारों की ओर विशेष ध्यान दिया. कम्पनी शासन में निष्पक्षता और दृढ़ता लाने में उसे काफी सफलता मिली. उसने कम्पनी की सेवा, लगान व्यवस्था, न्याय और व्यापार सम्बन्धी अनेकों सुधार किये. लगान व्यवस्था के क्षेत्र में उसके द्वारा किया गया स्थायी बंदोबस्त (permanent settlement) ब्रिटिश शासन के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है.
कार्नवालिस (Cornwallis) का सबसे महत्त्वपूर्ण सुधार राजस्व व्यवस्था एवं उसकी वसूली का प्रबंध करना था. अभी तक कंपनी वार्षिक ठेका के आधार पर लगान वसूलती थी. सबसे ऊंची बोली बोलने वाले को जमीन दी जाती थी. इससे कंपनी और किसान दोनों को परेशानी होती थी. लॉर्ड कार्नवालिस ने 1793 ई. में स्थायी व्यवस्था लागू की. स्थायी बंदोबस्त के आधार पर जमींदार भूमि के स्वामी बना दिए गए. जब तक जमींदार सरकार को निश्चित लगान देते रहते थे तब तक भूमि पर उनका अधिकार सुरक्षित रहता था. लगान नहीं देने की स्थिति में उन्हें अधिकार से वंचित किया जा सकता था. सरकार के साथ किसानों को कोई सम्बन्ध नहीं था. स्थाई बंदोबस्त को व्यवाहारिक रूप देकर कार्नवालिस भारत में जमींदारों का एक शक्तिशाली वर्ग तैयार करना चाहता था जो अंग्रेजों का हित चिन्तक रहे. लगान की रकम निश्चित कर देने से अंग्रेज़ अधिकारी भी प्रतिवर्ष लगान वसूलने के झंझट से मुक्त हो गए.
स्थायी बंदोबस्त से जमींदारों को लाभ
स्थायी बंदोबस्त से सबसे ज्यादा लाभ जमींदारों को हुआ. वे जमीन के वास्तविक स्वामी बन गए और उनका यह अधिकार वंशानुगत था. यह वर्ग भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ को मजबूत करने में सहयोग करने लगे. दूसरी ओर भूमि पर स्थाई स्वामित्व ही जाने से वे कृषि विकास के कार्य में रूचि लेने लगे जिससे उत्पादन में वृद्धि होने लगी. उत्पादन में वृद्धि होने से जमींदारों को अधिक लाभ प्राप्त होने लगा. कंपनी को भी प्रतिवर्ष एक निश्चित आय की प्राप्ति होने लगी. वह बार-बार लगान निर्धारित करने तथा वसूलने के झंझट से मुक्त होकर अपना ध्यान प्रशासनिक क्षमता को बढ़ाने में लगाया. साथ ही अब लगान वसूलने के लिए कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं करने से धन की बचत होने लगी. उद्योग-धंधों के विकास और उत्पादन में वृद्धि होने से कंपनी को काफी लाभ हुआ.
स्थाई बंदोबस्त के बुरे परिणाम
दूसरी और स्थायी बंदोबस्त के कई बुरे परिणाम भी निकले. स्थाई बंदोबस्त में जमींदार और कंपनी के बीच समझौता था और किसानों को जमींदारों की दया पर छोड़ दिया गया. जमींदार किसानों का बेरहमी से शोषण करने लगे. किसानों से बेगार, भेंट और उपहार लिया जाने लगा. किसानों को जमीन पर कोई अधिकार नहीं रहा, वे सिर्फ जमीन पर कार्य करते थे. इस नयी व्यवस्था के कारण किसान दिनोंदिन गरीब होते चले गए. गरीब किसानों को अपने अधिकारों की रक्षा के लिए कोई कानूनी संरक्षण प्राप्त नहीं था. समाज में आर्थिक शोषण और सामाजिक विषमता की खाई बढ़ती चली गयी. जमींदार किसानों का शोषण कर धनवान बन गए और किसानों की दरिद्रता बढ़ती ही गई.