क्रिप्स मिशन |
सन 1942 की शुरुआत में युद्ध की परिस्थियों ने ब्रिटिशों को भारतीय नेताओं से बात करने पर मजबूर कर दिया| दक्षिण पूर्व एशिया के विभिन्न देशों में जापानी सेना के हाथों ब्रिटिश सेना को हार का सामना करना पड़ा था|जापानियों ने भारत के भी कई क्षेत्रों पर हवाई हमले किये थे|इसी समय ब्रिटिश मंत्रिमंडल के सदस्य सर स्टैफोर्ड क्रिप्स को भारतीय नेताओं के साथ बात करने के लिए भारत भेजा गया| इसे क्रिप्स मिशन के नाम से जाना गया| यह वार्ता विफल रही| ब्रिटिश,भारत में वास्तविक राष्ट्रीय सरकार की स्थापना करने के इच्छुक नहीं थे| उन्होंने रजवाड़ों के हितों को बढावा देने का भी प्रयास किया| हालाँकि उन्होंने संविधान सभा की मांग स्वीकार ली थी लेकिन इस बात पर जोर दिया कि सभा में भारतीय राज्यों का प्रतिनिधित्व रजवाड़ों द्वारा नामित सदस्यों के द्वारा किया जाये और राज्यों की जनता का इसमें कोई प्रतिनिधितित्व न हो|
क्रिप्स मिशन के प्रस्ताव
• डोमिनियन के दर्जे के साथ एक भारतीय संघ की स्थापना की जाएगी जो कि राष्ट्रमंडल के साथ संबंधों को तय करने के लिए स्वतंत्र होगा साथ संयुक्त राष्ट्र व अन्य अंतर्राष्ट्रीय निकायों में भागीदारी के लिए वह स्वतंत्र होगा|
• युद्ध की समाप्ति के बाद एक नए संविधान का निर्माण करने के लिए संवैधानिक सभा बुलाई जाएगी|इस सभा के सदस्य आंशिक रूप से प्रांतीय सभाओं के द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार चुने जायेंगे और आंशिक रूप से रजवाड़ों द्वारा नामित किये जायेंगे|
• ब्रिटिश सरकार नए संविधान को निम्नलिखित शर्तों पर ही स्वीकार करेगी:
(क) जो भी प्रान्त संघ में शामिल नहीं होना चाहता है वह अपना अलग संघ और अलग संविधान निर्मित कर सकता है|
(ब) नए संविधान का निर्माण करने वाला निकाय और ब्रिटिश सरकार शक्तियों के हस्तांतरण और प्रजातीय व धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए एक संधि करेगा|
• गवर्नर जनरल का पद यथावत रहेगा और भारत की रक्षा का दायित्व ब्रिटिश हाथों में ही बना रहेगा|
निष्कर्ष
क्रिप्स मिशन द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिशों के प्रति भारतीयों का पूर्ण सहयोग प्राप्त करने के उद्देश्य भेजा गया था| जब स्टैफोर्ड क्रिप्स वापस गए तो अपने पीछे हताशा और कड़वाहट से भरे भारतीयों को छोड़ गये, जिनके मन में अभी भी फासीवादी आक्रोश के शिकार लोगों के प्रति संवेदना थी, जो यह महसूस करते थे कि देश की वर्तमान परिस्थितियाँ असहनीय हो चुकी है और अब समय आ गया है कि साम्राज्यवाद पर अंतिम और निर्णायक प्रहार किया जाये|