राजपूत |
औरंगजेब की धार्मिक और प्रशासनिक नीतियों से असंतुष्ट होकर मेवाड (उदयपुर) ,मारवाड (जोधपुर) और आमेर (जयपुर) जैसे प्रमुख राजपूत राज्य मुग़ल साम्राज्य से अलग हो गए।जोधपुर और जयपुर के शासकों को गुजरात और मालवा का मुग़ल गवर्नर नियुक्त किया गया था। एक समय तो ऐसा लगा कि राजपूत मुगल साम्राज्य में अपनी स्थिति और प्रभाव को फिर से प्राप्त कर रहें है और जाटों एवं मराठों के विरुद्ध मुग़ल साम्राज्य के प्रमुख सहयोगी के रूप में उभर रहे है। जोधपुर और जयपुर के राजाओं ने उत्तरवर्ती मुगलों के काल में मुग़ल साम्राज्य के काफी बड़े हिस्से को अपने प्रभाव में ले लिया।औरंगजेब की मृत्यु के बाद जोधपुर और जयपुर के राजा दिल्ली की राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाने लगे।
इस समय के सबसे प्रमुख राजपूत राजा आमेर के सवाई राजा जय सिंह थे जिन्हें पहले सूरत और बाद में आगरा का गवर्नर नियुक्त किया गया था। उन्होंने जयपुर जैसे सुन्दर शहर की स्थापना की और दिल्ली, जयपुर ,वाराणसी ,उज्जैन और मथुरा में नक्षत्र वेधशालाओं (जंतर-मंतर) का निर्माण कराया। आगरा से लेकर सूरत तक के क्षेत्र का उनके हाथों में होने से उन्हें अपने राज्य को मजबूत और समृद्ध बनाने में मदद मिली।जाटों,मराठों और अन्य क्षेत्रीय राज्यों के उदय होने से अपने राज्य के बाहर उनकी जागीरें कम होने लगी और उनका प्रभाव भी धीरे-धीरे कम होने लगा।
हालाँकि, राजपूतों की राजनीतिक शक्ति का ह्रास हो गया था लेकिन एक राजस्थानी समूह का देश की अर्थव्यवस्था में प्रभाव बढ़ गया था। ये वे व्यापारी थे जो उस समय गुजरात ,दिल्ली,आगरा के महत्वपूर्ण केन्द्रों के बीच होने वाले व्यापार में शामिल थे।साम्राज्य के पतन के साथ ही इन केन्द्रों का व्यवसायिक महत्व भी कम होने लगा। अतः ये व्यापारी नए केन्द्रों की और बढ़े और बंगाल, अवध एवं दक्कन में व्यापार और वाणिज्य को नियंत्रित करने लगे।
निष्कर्ष
राजपूतों ने सम्राट औरंगजेब की नीतियों से असंतुष्ट होकर स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया। मुग़ल साम्राज्य के टूटने से संपूर्ण भारत की राजनीतिक परिस्थितियाँ बदल गयीं ।इन बदलती परिस्थितियों के कारण पूरे भारत के राजनीतिक,आर्थिक और सैन्य गठबंधनों में आमूल-चूल बदलाव आ गया।