मराठा के अधीन पेशवा

मराठा के अधीन पेशवा
मराठा के अधीन पेशवा


मराठा के अधीन पेशवा
मराठा एक अत्यधिक लड़ाकू/हिंसक जाति थी जिसने दक्कन क्षेत्र में शक्तिशाली संघ की स्थापना की| मुग़ल शासक औरंगजेब की मृत्यु के बाद वे राजनीति और सत्ता के केंद्र में आ गए| स्थानीय नेता शिवाजी ने 1674 ई. में स्वतंत्र मराठा राज्य की स्थापना की| उनकी प्रशासनिक प्रणाली हिन्दू और मुस्लिम संस्थाओं का मिश्रण थी. पेशवा राज की स्थापना के बाद मराठों की प्रशासनिक प्रणाली में कई परिवर्तन किये गए|

मराठा संघ:

मराठा संघ के उदय में राजाराम द्वारा मराठा सरदारों को जागीरें प्रदान करने के कदम का महत्वपूर्ण योगदान था|
इस संघ की आधार का निर्माण बाजीराव प्रथम के समय में हुआ जब शाहू ने विभिन्न मराठा सरदारों को अलग अलग क्षेत्रों पर चौथ व सरदेशमुखी वसूलने के अधिकार प्रदान कर दिए |
मराठा संघ के सर्वाधिक महत्वपूर्ण मराठा सरदार निम्नलिखित थे-1. बरार के भोंसले 2. बड़ोदरा के गायकवाड़ 3. इंदौर के होलकर 4. ग्वालियर के सिंधिया 5. पूना के पेशवा |

मराठों के अधीन पेशवा

पेशवा मराठों के प्रति वफादार मंत्री थे जिनकी नियुक्ति राजा को विभिन्न प्रशासनिक एवं राजनितिक मुद्दों पर सलाह देने के लिए की गयी थी| कुल सात पेशवाओं में सर्वाधिक योग्य पेशवा बाजीराव प्रथम था

बालाजी विश्वनाथ (1713-1721 ई.) -
वह 1713 ई. में शाहूजी द्वारा पेशवा के रूप नियुक्त किया था ताकि साम्राज्य को संगठित किया जा सके| उसने लगभग सभी सरदारों पर जीत हासिल कर मराठा साम्राज्य का विस्तार किया और पेशवा के पद को अत्यधिक महत्वपूर्ण बना दिया|

बाजीराव प्रथम (1721-1740 ई.) - 
वह बालाजी विश्वनाथ का बड़ा पुत्र था और बीस वर्ष की आयु में ही अपने पिता के बाद पेशवा का पद ग्रहण किया| वह शिवाजी के बाद गुरिल्ला तकनीक का सबसे बड़ा प्रतिपादक था|

बालाजी बाजीराव (1740-1761 ई.) – वह नाना साहब के नाम से भी जाना जाता था जो अपने पिता बाजीराव की मृत्यु के बाद पेशवा बन था| पानीपट के तृतीय युद्ध में अपने पुत्र (विश्वास राव) और चचेरे भाई (सदाशिव राव) की मृत्यु के सदमे के कारण 1761 ई. में उसकी मृत्यु हो गयी|

माधव राव प्रथम(1761-1772 ई.) – 
बालाजी बाजीराव की मृत्यु के बाद उनका सत्रह वर्षीय पुत्र माधव राव प्रथम पेशवा बना और पेशवा परिवार के सबसे बड़े सदस्य रघुनाथ राव को अल्पवयस्क पेशवा का संरक्षक बनाया गया| माधव राव प्रथम की मृत्यु के बाद पेशवा पद का महत्व कम हो गया|

पेशवाओं का प्रशासन

पूना में स्थित पेशवा का सचिवालय ‘हुजुर दफ्तर’ कहलाता था| पेशवा काल में सामंत अपनी जागीरों पर स्वतंत्र रूप से शासन करते थे|
उन्होंने ग्राम को छोटी इकाइयों में बाँट दिया जिसका प्रमुख ‘पाटिल’ कहलाता था और कुलकर्णी ग्रामीण दस्तावेजों के रख-रखाव में उनकी मदद करते थे|’पोतार’ नकदी/रोकड़ का निरीक्षण करता था|
बलूटे प्रणाली के तहत किसानों को भुगतान माल के रूप में करना पड़ता था लेकिन ज्यादातर समय उन्हें प्रतिवर्ष फसल के बाद कृषि उत्पादों का भुगतान करना पड़ता था|
भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए उन्होंने देशमुख ,देशपांडे और दराख्दारों की नियुक्ति की|

निष्कर्ष:

स्वतंत्र मराठा राज्य की स्थापना का राजनीतिक आधार मुगल सेनाओं के दक्षिण की ओर बढने के साथ ही तैयार हो गया था खानदेश का पतन ,अहमदनगर का धीरे-धीरे ख़त्म होते जाने और दक्कन क्षेत्र में मुग़ल सुबेदारी व्यवस्था ने मराठों के जीवन के प्रत्येक पक्ष को प्रभावित किया और शिवाजी के नेतृत्व में मराठों को एक राष्ट्र के रूप में संगठित होने के लिए प्रेरित किया| लेकिन दुर्भाग्य से, मराठा संघ ब्रिटिश साम्राज्य के सामने टिक नहीं पाया और समाप्त हो गया|

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