पंजाब

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पंजाब
दसवें एवं अंतिम गुरु गुरु गोविन्द सिंह सिक्खों को एक लड़ाकू समूह के रूप में संगठित तो कर दिया था लेकिन औरंगजेब के शासनकाल तक वे कोई भी राज्य प्राप्त करने में सफल न हो सके। उनकी मृत्यु के बाद सिक्खों को बंदा बहादुर (1708-1716 ई।) के रूप में एक एक योग्य नेता प्राप्त हुआ। उन्होंने बड़ी संख्या में सिक्खों को संगठित किया और सरहिंद पर कब्ज़ा कर लिया। उसने एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना का प्रयास किया और गुरुनानक व गुरु गोविन्द सिंह के नाम पर सिक्के चलवाए तथा अपनी मुहर लगे हुए आदेश जारी किये। उसके नेतृत्व में सिक्खों ने मुग़लों का बहादुरीपूर्वक विरोध किया और लाहौर से दिल्ली के बीच के पूरे क्षेत्र पर जमकर लूटपाट की। मुगलों के विरुद्ध अपने संघर्ष के दौरान उसे गुरुदासपुर के किले में बंदी लिया गया। उसके बाद बंदा बहादुर और उसके समर्थकों को दिल्ली भेज दिया गया जहाँ उनके साथ बहुत अमानवीय व्यवहार किया गया। बंदा बहादुर के युवा पुत्र की हत्या कर दी गयी और स्वयं उसे भी अनेक तरह से उत्पीड़ित किया और उसकी भी हत्या कर दी गयी। बंदा बहादुर के समर्थक उसे ‘सच्चा पादशाह’ (सच्चा बादशाह) कहते थे।

गुरुनानक और गुरु गोविन्द सिंह के मतों/सिद्धांतों ने लोगों के दिलों में गहरी जड़ें जमा ली थी। सिक्खों ने स्वयं को धीरे धीरे एक सिख राज्य के रूप में संगठित कर लिया।पंजाब में नादिरशाह और अहमदशाह अब्दाली के आक्रमणों के बाद उपजी अव्यवस्था और संदेह की स्थिति ने सिखों को एक शक्ति के रूप में उभरने में मदद की। 1764 ई में सिख अमृतसर में इकट्ठे हुए और पहली बार ‘देग,तेग और फ़तेह’ नाम से शुद्ध चांदी के सिक्के ढाले।ये पंजाब राज्य में सिख-सम्प्रभुता की पहली उद्घोषणा थी। उन्होंने स्वयं को बारह मिसलों (लोकतांत्रिक ढांचे पर आधारित सैन्य भाईचारा) में संगठित किया और पंजाब क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित कर लिया।इन मिसलों के प्रमुखों ने आपस में क्षेत्रों का बंटवारा कर लिया था।यहाँ तक की अहमदशाह अब्दाली भी इन मिसलों को नष्ट करने में सफल नहीं हो पाया और उसके भारत से लौटने के दो सालों के भीतर ही सरहिंद और लाहौर में उसके द्वारा नियुक्त किये गए गवर्नरों को बाहर खदेड़ दिया गया। नाभा, पटियाला और कपूरथला जैसी छोटी –छोटी जागीरों का उदय हुआ। 18वीं सदी के अंत में महाराजा रणजीत सिंह ने मिसलों को संयुक्त कर एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना की।

मिसल का नाम                    -----------                मिसल का संस्थापक

सिंहपुरिया मिसल                -----------                  नवाब कपूर सिंह

अहलुवालिया मिसल             ----------                  जस्सा सिंह

रामगढ़िया मिसल                 ----------                  जस्सा सिंह रामगढ़िया

फुलकियाँ मिसल                  ----------                  फूल सिंह

कन्हीवा मिसल                     ----------                   जय सिंह

भागी मिसल                        -----------                  हरी सिंह

सुकरचकिया मिसल             -----------                चरत सिंह

निशानवालिया मिसल           -----------                सरदार सांगत सिंह

करोढ़ सिंघिया मिसल           -----------                भगेल सिंह

नकी मिसल                         -----------                हीरा सिंह

शहीदी मिसल                     -----------                बाबा दीप सिंह

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध

अंग्रेजों ने दलीप सिंह के शासनकाल में पंजाब पर आक्रमण किया और लाहौर पर कब्ज़ा कर लिया तथा 9 मार्च 1846 ई में लाहौर की संधि पर हस्ताक्षर हुए।
युद्ध हर्जाने का भुगतान न कर पाने के कारण पंजाब दरबार कंपनी को स्थानांतरित कर दिया गया। कंपनी ने समझोते में प्रमुख भूमिका निभाने वाले गुलाब सिंह को कश्मीर सौंप दिया।
द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध

संधि की शर्तों और समझौते के बावजूद पंजाब की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ था जिसने द्वितीय आंग्ला- सिख युद्ध का आधार तैयार कर दिया।
युद्ध के पश्चात्,लार्ड डलहौजी द्वारा पंजाब को कंपनी में मिला लिया गया और लॉरेंस को पंजाब का प्रथम कमिश्नर बनाया गया।
निष्कर्ष:

18 वीं सदी में मुग़ल साम्राज्य के विघटन और पतन का पूर्व में अधीन किये गए राजाओं और उन क्षेत्रीय नेताओं द्वारा स्वागत किया गया जो अपना खुद का एक राज्य निर्मित करना चाहते थे।पंजाब एक ऐसा ही क्षेत्र था जिसका मुग़ल साम्राज्य के कमजोर पड़ने के बाद उदय हुआ।

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