चित्तरंजन दास (1870-1925 ई.) |
चित्तरंजन दास (1870-1925 ई.) Biography in Hindi
चित्तरंजन दास का प्रारम्भिक जीवन (Biography)
बंगाल के इने-गिने प्रसिद्ध वकीलों में देशबन्धु चित्तरंजन दास का नाम था. उनका जन्म 1870 ई. में मुंशीगंज जिले, बांग्लादेश में हुआ था. उनके पिता का नाम भुवन मोहन दास और माता का नाम निस्तारिणी देवी था. इनका जन्म एक वैद्य-ब्राहमण परिवार में हुआ था. कांग्रेस के प्रति आकर्षण होने के बाद चित्तरंजन दास ने राष्ट्र-सेवा को अपना लक्ष्य बना लिया था. 1917 ई. में उन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय सहयोग देना प्रारम्भ किया और 1919 ई. के अधिनियम की कटु आलोचना की.
शिक्षा
दास परिवार में कई वकील थे. चित्तरंजन दास के चाचा दुर्गा मोहन दास ब्रह्म समाज से जुड़े थे. चित्तरंजन ने पढ़ाई Emmanuel College, Cambridge से की. लन्दन में उनकी मुलाक़ात अरबिंद घोष, अतुल प्रसाद सेन और सरोजनी नायडू से हुई.
गाँधीजी से खिन्न
मोतीलाल नेहरु और चित्तरंजन दास दोनों एक-दूसरे के पृष्ठपोषक और सहायक थे. चित्तरंजन दास ने भी गाँधी द्वारा पेश किए असहयोग आन्दोलन के प्रस्ताव पर अपनी असहमति व्यक्त की थी. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने जब असहयोग आन्दोलन के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया तो एक अनुशासित कार्यकर्ता की तरह चित्तरंजन दास ने असहयोग आन्दोलन में भाग लिया. चित्तरंजन दास गांधी द्वारा अचानक आन्दोलन को स्थगित करने के पक्ष में नहीं थे. जेल के अन्दर बंद रहने के बावजूद चित्तरंजन दास ने असहयोग आन्दोलन को स्थगित करने पर अपनी तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए यह कहा था कि 'महात्मा जी किसी अभियान का प्रारम्भ शानदार ढंग से करते हैं, वे उसे निपुणतापूर्वाग आगे बढ़ाते हैं, उन्हें एक के बाद एक सफलता मिलती जाती है, यहाँ तक की वे अपने अभियान के चरम शिखर पहुँच जाते हैं, परन्तु इसके बाद उनकी हिम्मत टूट जाती और वे लड़खड़ाने लगते हैं.”
कांग्रेस से अलग
चित्तरंजन दास निडर और ओजस्वी वक्ता थे. 1922 ई. में उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया. अध्यक्ष की हैसियत से चित्तरंजन दास ने सरकार के विरुद्ध विधानसभाओं में संघर्ष करने और निर्वाचन में भाग लेने का प्रस्ताव रखा. कांग्रेस ने चित्तरंजन दास के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया. फलतः चित्तरंजन दास कांग्रेस से अलग हो गए और पंडित मोतीलाल नेहरु के सहयोग से 'स्वराज दल” की स्थापना कर ली. स्वराज दल का मुख्य उद्देश भारत की स्वतंत्रता था. भारत को स्वतंत्र बनाने के लिए वे कांग्रेस का विरोध करने को तैयार थे. स्वराज दल को चित्तरंजन दास के परिश्रम के बल पर बंगाल विधानसभा में सफलता मिली और बंगाल विधान परिषद् में वे स्वराज पार्टी के नेता निर्वाचित हुए. बंगाल में चित्तरंजन दास के विरोध के कारण द्वैध शासन असफल रहा. स्वराज पार्टी को बंगाल में मंत्रिमंडल बनाने का निमंत्रण दिया गया. परन्तु उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया. उनके कड़े विरोध प्रकट करने के चलते सरकार को वैधानिक सुधार करना पड़ा. वह सुख को छोड़कर राष्ट्रीय संग्राम में कूद पड़े और उनका त्याग और बलिदान राष्ट्रीय आन्दोलन का एक महत्त्वपूर्ण अंग बन गया था. कर्मठ नेता का देहांत 16 जून, 1925 ई. को हुआ. बंगाल ह नहीं पूरा राष्ट्र उन्हें देशबन्धु के नाम से पुकारता था.