प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस - The Direct Action Day 1946
शुरुआत में कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने ही कैबिनेट मिशन (<<Click to read it) को स्वीकार कर लिया पर अंतरिम सरकार की योजना को कांग्रेस स्वीकार नहीं कर सकी. यह एक हास्यास्पद स्थिति थी. लीग का दावा था कि वह कांग्रेस के बिना भी आन्तरिक सरकार का गठन कर सकती है. वायसराय ने लीग के प्रस्ताव को ठुकरा दिया. इससे जिन्ना गुस्सा हो गया. उसे अच्छी तरह से पता था कि संविधान सभा में लीग की स्थिति कमजोर थी. इसलिए उसने कैबिनेट मिशन योजना को ठुकरा दिया और पाकिस्तान की प्राप्ति के लिए 16 अगस्त, 1946 को सीधी कार्रवाई (Direct Action) करने की घमकी दी. चलिए जानते हैं इस Direct Action Day, जिसे भारतीय इतिहास का Black Day भी कहा जाता है, के बारे में. (Background in Hindi)
मुस्लिम लीग vs कांग्रेस
शिमला सम्मलेन (<<Click to read it) की असफलता के बाद कैबिनेट मिशन भारत आया. इसने पाकिस्तान की मांग को ठुकरा दिया, पर उसने संविधान के निर्माण और किर्यान्वयन के पहले एक अंतरिम सरकार के गठन का प्रस्ताव रखा. कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने मिशन के प्रस्तावों को स्वीकार तो किया पर अंतरिम सरकार में शामिल होने के प्रश्न पर एक समस्या खड़ी हो गयी. शुरूआती दौर में कांग्रेस ने अंतरिम सरकार में शामिल होना स्वीकार नहीं किया. इसलिए मुस्लिम लीग ने दावा किया कि वह कांग्रेस के बिना भी सरकार बना सकती है, परन्तु वायसराय कांग्रेस को अलग रखकर सरकार बनाने के पक्ष में नहीं थे इसलिए लीग के दावे को ठुकरा दिया. जिन्ना ने इस बात पर क्रोध जताया और कैबिनेट मिशन की योजना को अस्वीकार कर दिया. उसने 16 अगस्त, 1946 को पाकिस्तान के लिए सीधी कार्रवाई करने का निश्चय किया. कांग्रेस बाद में सरकार बनाने के लिए तैयार हुई तो नेहरु ने जिन्ना को भी सरकार में शामिल होने का सुझाव दिया, पर वह अपने जिद पर अड़ा रहा.
प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस
16 अगस्त, 1946 को कलकत्ता में भयानक दंगे हुए. लीग के लोगों ने लड़कर लेंगे पाकिस्तान का नारा लगाया. इस साम्प्रदायिक दंगे में हज़ारों लोगों की जानें गईं. बंगाल से फैलते-फैलते यह दंगा नोआखली, बिहार और अन्य जगहों तक फैल गया. मुस्लिम लीग अब हताशा की स्थिति में थी. किसी भी प्रकार वह सत्ता हथियाना चाहती थी जिससे देश का विभाजन करवाया जा सके और मुसलमानों का हित सुरक्षित रखा जा सके.
लीग का सरकार में प्रवेश
आतंक फैलाने के बाद मुस्लिम लीग ने अपनी नीति बदल ली. अंतरिम सरकार का जब गठन हो रहा था तो वायसराय ने लीग के सामने भी सरकार में शामिल होने का प्रस्ताव रखा. इस बार जिन्ना ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. फलतः, लीग भी सरकार में सम्मिलित हो गई. लीग एक निश्चित उद्देश्य से अंतरिम सरकार में शामिल हुई थी. वह सरकार में शामिल होकर कांग्रेस की नीतियों का विरोध करने के लिए शामिल हुई थी. अंतरिम सरकार में मुस्लिम लीग के नेता लियाकत अली को वित्त विभाग सौंपा गया था. नया बजट प्रस्तुत करते समय लियाकत अली ने ऐसा बजट बनाया जिसमें साम्प्रदायिकता के तत्त्व शामिल थे. नए बजट में व्यापारियों पर 25% कर लगाए गए जिससे कई व्यापार करने वाले हिन्दू क्रोधित हुए. अन्य विभाग के कार्य भी वित्त विभाग के कारण कठिन हो रहे थे. सरदार पटेल ने भी क्षोभ व्यक्त किया कि अपने मंत्रालय में एक चपरासी की नियुक्ति भी वित्त विभाग की स्वीकृति के बिना नहीं हो सकती. भाषा और आंतरिक व्यवस्था के प्रश्न पर भी लीग और कांग्रेस के बीच मतभेद था. दोनों के लिए एक साथ काम करना मुश्किल होता हुआ दिख रहा था.
लन्दन कांग्रेस (दिसम्बर, 1946)
अंतरिम सरकार के गतिरोध को दूर करने हेतु लन्दन में 3-6 दिसम्बर को एक सम्मलेन आयोजित किया जिसमें एटली, वैवेल, नेहरु और जिन्ना ने भाग लिया. इसमें दोनों (कांगेस-लीग) के बीच मतभेद को दूर करने का प्रयास किया गया पर सफलता हाथ नहीं लगी. लीग ने दिसम्बर, 1946 में होनेवाली संविधान-सभा की बैठक का बहिष्कार किया.
एटली की घोषणा
भारत की तत्कालीन स्थिति से चिंतित होकर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली ने 20 फरवरी, 1947 को यह घोषणा की कि अँगरेज़ जून, 1948 के पूर्व सत्ता पूर्णतः भारतीयों के हाथ सौंप देंगे. घोषणा में यह भी कहा गया कि अगर संविधान सभा उस तारीख तक कोई संविधान तैयार नहीं कर सकेगी तो अंग्रेजी सरकार यह निश्चित करेगी कि सत्ता किसे सौंपी जाये - किसी केन्द्रीय सरकार को या प्रांतीय सरकारों को. सत्ता के हस्तांतरण के कार्य को पूरा करने के लिए लॉर्ड वैवेल की जगह पर माउंटबेटन को नए वायसराय के रूप में नियुक्त किया गया.