जिन्ना की चौदह मांगें |
जिन्ना की चौदह मांगें (Fourteen points of Jinnah)
1928 ई. के राष्ट्रीय सम्मलेन में नेहरु रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया था. नेहरु रिपोर्ट के बारे में जिन्ना ने यह कहा था कि - 'नेहरु रिपोर्ट को हिंदुओं की ओर से मुस्लिम प्रस्तावों का जवाब था.” जिन्ना ने कांग्रेस प्रस्ताव को, जिसमें नेहरु रिपोर्ट को स्वीकार किया गया था, मुस्लिम सम्प्रदाय का अपमान समझा और यह निष्कर्ष निकाला कि महात्मा गांधी और कांग्रेस से कोई न्याय प्राप्त नहीं किया जा सकता. मुस्लिम लीग के गुटों के बीच एकता लाने के उद्देश्य से जिन्ना ने मार्च, 1929 ई. में दिल्ली में लीग की एक बैठक बुलाई और नेहरु रिपोर्ट को अस्वीकार करते हुए चौदह सूत्री/14 सूत्री/Fourteen points/demands of Jinnah पेश की (Read about background of jinnah's fourteen points.). ये माँगे/demands/points इस प्रकार थीं -
जिन्ना की चौदह मांगें (Fourteen points of Jinnah)
- भारत का संविधान संघात्मक (federal) हो और अवशिष्ट अधिकार प्रान्तों के अधीन रखा जाए.
- सभी प्रान्तों में सामान रूप से स्वायत्त शासन (autonomous government) की स्थापना की जाए.
- सभी विधानमंडलों और निर्वाचित निकायों का फिर से गठन किया जाए और अल्पसंख्यक जातियों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया जाए. प्रांतीय विधानमंडलों में बहुसंख्यक लोगों का बहुमत रहे और उसे न तो घटाया जाए और न बराबरी पर लाया जाए.
- केन्द्रीय विधानमंडल में मुसलमानों का एक-तिहाई प्रतिनिधित्व रहे.
- सभी सम्प्रदायों का प्रतिनिधित्व पृथक निर्वाचन-पद्धति (separate electorate) के आधार पर हो और यदि कोई सम्प्रदाय चाहे तो वह संयुक्त निर्वाचन-पद्धति को अपना सकता है.
- पंजाब, बंगाल और पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत में क्षेत्रीय पुनर्गठन इस ढंग से किया जाए कि उसके कारण मुसलमान इन प्रान्तों में अल्पसंख्यक न हो जाएँ.
- सभी धार्मिक सम्प्रदायों को पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी दी जाए और पूजा, आचरण, प्रचार-प्रसार पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जाए.
- किसी विधानमंडल में ऐसे विधेयक न पेश किये जाएँ जिसका सम्बन्ध किसी सम्प्रदाय विशेष के लिए हानिकारक हो. यदि उक्त सम्प्रदाय के 3/4 सदस्य विधेयक के सम्बन्ध में अपनी सहमति प्रकट न करें तो उसे पेश नहीं किया जाए.
- सिंध को बम्बई प्रांत से अलग कर स्वतंत्र प्रांत का दर्जा दिया जाए.
- उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत और बलूचिस्तान में अन्य प्रान्तों की तरह सांविधानिक सुधार आरम्भ होना चाहिए.
- अन्य भारतीयों की तरह मुसलमानों को कुशलता के आधार पर सरकारी संस्थाओं और स्वायत्तशासी निकायों में नौकरी करने का उचित अवसर प्राप्त हो.
- भावी संविधान में मुसलमानों के धर्म, संस्कृति, भाषा और शिक्षा के विकास की समुचित व्यवस्था की जाए.
- केंद्रीय और प्रांतीय मंत्रिमंडलों में मुसलमानों को 1/3 प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए.
- केन्द्रीय सभा तभी संविधान में संशोधन कर सकती है जब ऐसा करने के इ उसे भारतीय संघ के घटक-राज्यों से स्वीकृति मिल चुकी हो.
Brief of Jinnah 14 Points
जिन्ना ने पृथक निर्वाचन (separate electorate) के आधार पर जोर दिया था और संयुक्त निर्वाचन की पद्धति पर अपनी असहमति प्रकट की थी. मुस्लिम बहुल प्रान्तों में मुसलमानों को विशेष प्रतिनिधित्व दिया जाए और जहाँ वे अल्पसंख्यक हैं, वहाँ भी उन्हें अधिक प्रतिनिधित्व प्राप्त हो. जिन्ना की योजना पर सर्वदलीय मुस्लिम कांग्रेस ने अपनी असहमति प्रकट की और शफी-गुट भी सहमत नहीं हुआ. मुस्लिम लीग की बैठक हंगामे के बीच स्थगित कर दी गई. जिन्ना की चौदह मांगों (fourteen demands/points of Jinnah) को पेशावर के जमैयत-उल-उल्मा द्वारा पहले स्वीकृति दी गई. राष्ट्रवादी मुसलमानों के द्वारा साम्प्रदायिक निर्वाचन को राजनीतिक निर्वाचन का रूप देने का प्रयास असफल कर दिया गया.